हल्द्वानी करीब 188 साल पहले कारोबार के लिए बसा था। पहाड़ी-मैदानी क्षेत्र के व्यापारी यहां आकर सामान बेचते थे। 7 दशकों में 25 हजार से 4.5 लाख लोग हल्द्वानी बने। गांव से महानगर तक
हल्द्वानी करीब 188 साल पहले कारोबार के लिए बसा था। पहाड़ी-मैदानी क्षेत्र के व्यापारी यहां आकर सामान बेचते थे। बस्ती सिर्फ नाम की थी। दूर जंगल था। लेकिन समय बीतने के साथ हल्द्वानी एक गांव से एक शहर बन गया और आज यह एक महानगर बन गया है।
देश की आजादी के बाद 1951 में हुई पहली जनगणना में यहां की आबादी 25,025 थी, जो वर्तमान में 71 साल 18 गुना बढ़कर करीब 4.5 लाख हो गई है। अब बाजार क्षेत्र में पैर रखने की भी जगह नहीं है। डॉ. किरण त्रिपाठी की हल्द्वानी मंडी से महानगर.., लेट. हल्द्वानी की विकास यात्रा का वर्णन आनंद बल्लभ उप्रेती की हल्द्वानी: स्मृति के झरोखों से नामक पुस्तक में किया गया है।
कहा जाता है कि 1834 में ब्रिटिश इंजीनियर ट्रेल ने हल्द्वानी शहर की स्थापना की थी। उस समय गिने-चुने गाँव थे। 1850 के बाद यहां पक्के मकान बनने लगे और 1857 तक स्थायी बंदोबस्त शुरू होने की बात कही जा रही है। सर्दियों में यहां पहाड़ों से लोग खेती करने आते थे। किताबों के मुताबिक 1881 में भारत की पहली जनगणना में यहां की आबादी 4,012 थी, जो दूसरे में बढ़कर 6,042 हो गई।