देहरादून। उत्तराखंड राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आज अपने फेसबुक पेज में पोस्ट करते हुए लिखा है कि राज्य की वर्तमान सरकार ने घी संक्रांत पर्व को भुला दिया है। हरीश रावत ने पोस्ट में लिखा कि अब हरेले का महापर्व आ रहा है, इसके ठीक एक माह बाद उत्तराखंडी व्यंजनों का त्यौहार घी संक्रांत आयेगा।
हमारी सरकार ने हरित उत्तराखंड की दिशा में कुछ निर्णय लिये और लागू किये। प्रथम निर्णय था, सरकार द्वारा हिमालय दिवस मनाए जाने का। दूसरा निर्णय था, हरेले के त्यौहार को राज्य त्यौहार के रूप में मनाने और इस अवसर पर राजकीय अवकाश घोषित करना। तीसरा निर्णय था, मेरा वृक्ष-मेरा धन योजना का क्रियान्वयन जिसके तहत कुछ विशेष प्रकार के फल व चारा और कास्ट प्रजाति के वृक्षों को लगाने वाले भाई-बहनों को वृक्ष बोनस के रूप में ₹300 और ₹400 की धनराशि देना और चौथा निर्णय था, जंगलों, पंचायती वनों में छोटे-छोटे जलाशय बनाकर पानी का संचय करना और ट्रेंचेज बनाकर जंगल की ढाल में पानी को रोकना। वन्यजीवों के लिए जंगल में कोमल घास उपलब्ध हो उसके लिए जंगल की खाली जमीन में मडुवा, झंगोरा, कौणी, भट्ट आदि के बीजों का छिड़काव तथा नदी घाटियों में आम, आंवला, मेहलू, काफल आदि जंगली फलों का छिड़काव। उद्देश्य स्पष्ट था कि एक जैव विविधता युक्त उत्तराखंड इस सबको आजीविका के साथ जोड़ने के लिए हमने घी संक्रांति पर्व के दिन उत्तराखंडी व्यंजनों की सार्वजनिक दावतें आयोजित की। उद्देश्य देश के व्यंजन बाजार में उत्तराखंड की प्रविष्टि। इस कदम को और आगे बढ़ाने के लिए हमने उत्तराखंडी व्यंजनों के लिए इंदिरा अम्मा भोजनालय खोले, लगभग 50 भोजनालय खुले और 400 का लक्ष्य था। साथ ही लक्ष्य यह भी था कि हाई-वेज में जगह-जगह पर उत्तराखंडी व्यंजन सराय विकसित की जाए। हमारी सरकार की विदाई के साथ घी संक्रांत पर्व तो लगभग भुला दिया गया है। हरेले में अवश्य प्रत्येक वर्ष देहरादून के कुल क्षेत्रफल के बराबर वृक्षारोपण किया जाता है। समाचारों में भी सुर्खियां आती हैं। मगर देखना बाकी है कि जंगल कितने हरे-भरे बने हैं? वनों की आद्रता कितनी बढ़ पाई है?
कांग्रेस सरकार की विदाई के साथ राज्य सरकार ने घी संक्रांत पर्व को भुला दिया : रावत
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