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देव संस्कृति हमारी परंपरा का अंग : मोहन भागवत

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हरिद्वार 28 अगस्त। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी ने कहा कि विविधता में एकता हमारी परंपरा का अंग हैै। मनुष्य मात्र को अपनी लघु चेतना को विकसित करना चाहिए, जिससे वे विविधता में एकता को समझ सकें और अपना सकें।  वे देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में जी-20 की थीम पर आयोजित दो दिवसीय वसुधैव कुटुंबकम व्याख्यानमाला के दूसरे दिन सभा को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भारत तेज का उपासक है। गायत्री परिवार भी सूर्य यानि इसी तेजस की उपासना करता है। इस यात्रा में चलने वाले प्रत्येक मनुष्य, साधक विश्व को बचाने के लिए कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि सारी दुनिया में शांति हो, इस दिशा में सबको मिलकर कार्य करना चाहिए। प्राचीनकाल में ऋषियों ने छोटे-छोटे प्रशिक्षण केन्द्र के माध्यम से लोगों को प्रशिक्षित किया करते थे, जिससे वे अपने सभी सहयोगियों के साथ सामंजस्य के साथ रहते थे और सब एक कुटुंब की भांति रहा करते थे। उन्होंने कहा कि भारत का उत्थान केवल भारत के लिए नहीं, वरन् पूरे विश्व का कल्याणकारी है। ये ही देव संस्कृति है। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि यह समय अपरिमित संभावना को लेकर आया है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन सुनिश्चित है-सिपाही जागें, सावधान हो लें, तभी भारत को विकसित राष्ट्र बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दया, त्याग, बलिदान और आध्यात्मिक उत्कर्ष का विकास केवल भारत में ही हुआ। भारत में ज्ञान की वह धाराएँ विद्यमान हंै, जो पूरे विश्व को प्रकाशित करेगी। व्याख्यानमाला के समापन से पूर्व कुलपति श्री शरद पारधी जी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने सरसंघचालक श्री भागवत जी का युगसाहित्य, रुद्राक्षमाला, गंगाजली आदि भेंटकर सम्मानित किया। इस अवसर पर सरसंघचालक ने यजन मोबाइल एप सहित कई पत्रिकाओं का विमोचन किया।  इससे पूर्व श्री भागवत जी ने भारत के एकमात्र बाल्टिक सेंटर, श्रीराम स्मृति उपवन सहित विश्वविद्यालय द्वारा संचालित विभिन्न प्रकल्पों का अवलोकन किया। सरसंघचालक ने विवि स्थित प्रज्ञेश्वर महादेव का अभिषेक कर सम्पूर्ण समाज की प्रगति की प्रार्थना की। इसके साथ ही श्री भागवत जी ने सफेद चंदन का पौधा लगाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। इसके पश्चात वे गायत्री तीर्थ शांतिकुंज पहुंचे। यहाँ उन्होंने अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुखद्वय श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या जी एवं श्रद्धेया शैलदीदी से भेंट परामर्श किया। युवा पीढ़ी एवं समाज के विकास संबंधी विभिन्न विषयों पर मंत्रणा हुई। इस अवसर पर प्रमुखद्वय ने सरसंघचालक को युगसाहित्य एवं गायत्री मंत्र लिखित शाल भेंटकर सम्मानित किया। इसके पश्चात वे युगऋषिद्वय की पावन समाधि सजल श्रद्धा-प्रखर प्रज्ञा पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित की और मानव मात्र के उत्थान हेतु प्रार्थना की। वहीं देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के मृत्युजंय सभागार में आयोजित सभा में विद्यार्थियों ने वसुधैव कुटुंबकम् की थीम पर आधारित विभिन्न पहलुओं पर शानदार सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। इस अवसर पर शांतिकुंज, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय परिवार सहित देश के विभिन्न कोनों से आये गायत्री साधक एवं अनेक गणमान्य नागरिक मौजूद रहे।

 

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