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पृथक आरक्षण को वैधानिक मान्यता देना ऐतिहासिक निर्णय

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देहरादून, 02 अगस्त। राष्ट्रीय वाल्मीकि क्रांतिकारी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व अध्यक्ष सफाई कर्मचारी आयोग उत्तराखंड सरकार भगवत प्रसाद मकवाना ने उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुसूचित जाति जनजाति आरक्षण के अंतर्गत उपजातियां को पृथक आरक्षण दिए जाने की  सरकारों को वैधानिक मान्यता दिए जाने का निर्णय ऐतिहासिक है जो स्वागत योग्य कदम है। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों की पीठ का मकवाना ने आभार व्यक्त किया क्योंकि उन्होंने देश में वर्षों से हाथ से मैला उठाने वाले वाल्मीकि समाज स्वच्छकार जातियों एवं अति दलित जातियों की पीड़ा को समझा। देश में 1950 से अनुसूचित जाति जनजातियों के लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई तब से अभी तक कुछ मजबूत जातियां ही अनुसूचित जाति जनजातियों के आरक्षण का लाभ शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक क्षेत्र में उठाती रही हैं। पूर्व में 1975 में पंजाब सरकार ने वाल्मीकि समाज एवं मजहबी सिख जातियों को देश में पृथक आरक्षण लागू की जाने की शुरुआत की, 1994 में हरियाणा सरकार ने ए और बी श्रेणी में अनुसूचित जाति आरक्षण को विभाजित कर अति दलित जातियों को उनके अधिकार देने की दिशा में निर्णय लिया था वर्ष 2001 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने सामाजिक न्याय कमेटी का गठन करके अति दलित और अति पिछड़ों को पृथक आरक्षण लागू किया था आंध्र प्रदेश में भी यह व्यवस्था लागू की गई थी जिसके बाद 2004 में उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने राज्य सरकारों के इस निर्णय को रद्द कर दिया निर्णय का आधार समानता के अधिकार के विरुद्ध माना गया किंतु अब संविधान पीठ द्वारा 2004 के निर्णय को पलटते हुए अनुसूचित जाति जनजाति के आरक्षण में जातियों की भागीदारी के तथ्यात्मक परीक्षण एवं अनुभव के आधार पर यह निर्णय आया है सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा स्पष्ट कहा गया है कि मैला ढोने वाले स्वच्छकारो के बच्चों के स्तर को उच्च स्थिति रखने वालों से तुलना किया जाना न्याय उचित नहीं है।

मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भागवत प्रसाद मकवाना ने कहा कि पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश आदि राज्यों की सरकारों ने तथ्यात्मक परीक्षण करनें के बाद ही समाज के अति दलित अति पिछड़ाओं को पृथक आरक्षण लागू किया था। इस ऐतिहासिक निर्णय के आने के बाद अब केंद्र और राज्य सरकार सामाजिक न्याय प्रदान करते हुए अनुसूचित जाति जनजाति के शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी से वंचित रहे अति दलित वाल्मीकि समाज और अति पिछड़े वर्गों को पृथक आरक्षण लागू करने हेतु वैधानिक रूप से स्वतंत्र होंगे।

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मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भगवत प्रसाद मकवाना ने यह भी कहा है कि उनके नेतृत्व में विधानसभा तथा उत्तर प्रदेश विधानसभा तथा जंतर मंतर संसद भवन पर कई बार वाल्मीकि समाज और अति दलित जातियों को पृथक आरक्षण की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन किए गए रेलिया और सम्मेलनों के माध्यम से सरकार तक इस विषय को उठाने का प्रयास किया जाता रहा क्योंकि इन इन वर्गों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया था आज भी वाल्मीकि समाज अति दलित जातियां शिक्षा रोजगार और राजनीतिक भागीदारी से वंचित हैं मोर्चा का गठन भी इस मांग के साथ ही  हुआ था। 8 जुलाई 2001 को नई दिल्ली के शाह ऑडिटोरियम में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री राजनाथ सिंह जी ने राष्ट्रीय वाल्मीकि सम्मेलन में अति दलित अति पिछड़ो को आरक्षण देने की घोषणा की गई थी उक्त कार्यक्रम के संयोजक भगवत प्रसाद मकवाना थे तथा संरक्षक उत्तर प्रदेश सरकार में तत्कालीन राज्य मंत्री रामचंद्र वाल्मीकि थे।

मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भागवत प्रसाद मकवाना ने कहा है कि सदियों से वाल्मीकि समाज मैला उठाने का कार्य कर रहा है ,सीवर में हजारों लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं वाल्मीकि समाज एवं स्वच्छकार जातियां सभी के स्वास्थ्य की सुरक्षा करने, सभी वर्गों की सेवा करने का कार्य वर्षों से करती आ रही हैं ,गंदगी उठाने के काम के कारण सफाई कर्मचारी अनेकों बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है तथा असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं किंतु उनके बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के बाद अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता यही स्थिति सरकारी योजनाओं के लाभ और राजनीतिक क्षेत्र में भी है इसलिए मान्य उच्चतम न्यायालय का यह फैसला ऐतिहासिक और सामाजिक न्याय के लिए सराहनीय प्रयास है जिसका राष्ट्रीय वाल्मीकि क्रांतिकारी मोर्चा स्वागत करता है।

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