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साम्प्रदायिकता नहीं सद्भाव है भारत की संस्कृति

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ऋषिकेश। सनातन संस्कृति आज के दिन को शौर्य दिवस के रूप में बनाती है। सभी पूज्य संतों ने संस्कृति व संस्कारों के ध्वज को फहराये रखने के लिये उद्बोधन दिया। आज बाबा हठयोगी, गौरीशंकर गौशाला, नीलधारा, हरिद्वार में शौर्य दिवस का कार्यक्रम बाबा हठयोगी की प्रेरणा से आयोजित किया गया जिसमें जगतगुरू स्वामी राजराजेश्वराश्रम, योगगुरू स्वामी रामदेव (आनलाइन), परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती, अखाड़ा परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत रविन्द्र पुरी, महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानन्द, स्वामी ज्ञानदेव महाराज, अयोध्याचार्य महाराज, आचार्य बालकृष्ण, महामंडलेश्वर उपेन्द्र प्रकाश, ऋषिश्वरानन्द महाराज, महामंडलेश्वर स्वामी ईश्वरदास महाराज, स्वामी यतिन्द्रानन्द महाराज, स्वामी सतपाल ब्रह्मचारी का पावन सान्निध्य व आशीर्वाद सभी को प्राप्त हुआ। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आज का दिन शौर्य दिवस है, आज का सूर्य एक नयी चेतना लेकर आया था। शौर्य दिवस सूर्य दिवस है, एक नया सनातन संस्कृति का सूर्य उगा जिसका परिणाम है कि आज केवल श्री राम मन्दिर नहीं बल्कि राष्ट्र मन्दिर का निर्माण हो रहा है। श्रीराम मन्दिर निर्माण से एक ऐसा अभियान शुरू हुआ जिसमें पूरे सनातन जगत को एक कर दिया। स्वामी जी ने कहा कि एक ढांचा तो गिरा, अब समय आया है कि जात-पात के ढांचों को गिराये, नफरत की दरारों को समरसता व सद्भाव से भरे। सनातन संस्कृति तोड़ने की नहीं बल्कि जोड़ने की है। सनातन तोड़ता नहीं बल्कि जोड़ता है। अब समय आ गया कि हम जात-पात के ढ़ांचे को गिरायें और सद्भाव व समरसता का वातावरण तैयार करें। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मेादी के नेतृत्व में सत्ता की जीत नहीं बल्कि सत्य की जीत हुई, सनातन की जीत हुई। सनातन व सत्य की संस्कृति का शंखनाद हुआ। वर्तमान समय में वर्ण व्यवस्था को तो मजबूत रखे क्योंकि वह हमारी नींव है परन्तु जाति-पाति की दीवारों को तोड़ना होगा। प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि मेरी माताओं-बहनों-बेटियों, युवा साथियों, किसानों ने जो निर्णय दिया है, उनके सामने मैं नतमस्तक हूँ। इस देश को जातियों में बांटने की बहुत कोशिश हुई लेकिन मैं लगातार कहता था कि मेरे लिए देश में चार जातियाँ ही सबसे बड़ी जातियाँ हैं। जब मैं चार जातियों की बात करता हूँ हमारी नारी शक्ति, हमारी युवा शक्ति, हमारे किसान और हमारे गरीब परिवार है। इन चार जातियों को सशक्त करने से ही देश सशक्त होने वाला है। वास्तव में अपने देश को सशक्त करना है तो जाति-पाति की सभी दीवारों को तोड़ना होगा, दरारों को भरना होगा और दिलों को जोड़ते हुये हमें आगे बढ़ना होगा।

भारत मूलतः विविधताओं का देश है, विविधताओं में एकता ही यहाँ की सामासिक संस्कृति की स्वर्णिम गरिमा को आधार प्रदान करती है। वैदिक काल से ही सामासिक संस्कृति में अंतर और बाह्य विचारों का अंतर्वेशन ही यहाँ की विशेषता रही है, इसलिये किसी भी सांस्कृतिक विविधता को आत्मसात करना भारत में सुलभ और संप्राप्य है कुछ लोगों ने इस सुलभता को हमारी कमजोरी समझा परन्तु भारत ने शान्ति के साथ हमेशा समाधान खोजा।

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स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय में समाज में जो सोच का संकट है, विचारों का संकट है उसका निदान करना होगा और इसका केवल एक निदान है सनातन संस्कृति। स्वामी जी ने कहा कि लोग कहते हैं सनातन बीमारी है, सनातन कोई बीमारी नहीं बल्कि ईलाज है, सनातन समस्या नहीं बल्कि समाधान है, सनातन डेंगू नहीं है सनातन तो डिवाइन है, सनातन मच्छर नहीं है बल्कि सनातन तो मस्त कर देने वाला है। उन्होंने कहा कि सनातन के दिव्य मंत्रों को जाने और एक बार जी कर देखे तो जीवन का रंग बदल जायेगा, रोग दूर हो जायेंगे, सारे विकार दूर हो जायेंगे और मिलकर कार्य करने का एक नया विचार पैदा होगा। डेंगू जब काटता है तो प्लेट्स कम हो जाती है परन्तु सनातन की डिवाइन एनर्जी जब छू लेेती हैं तो जीवन में पवित्रता बढ़ जाती है। स्वामी जी ने कहा कि सनातन है तो सुरक्षा है, सनातन है तो समृद्धि है, समानता है, समता है, सद्भाव है इसलिये आज शौर्य दिवस पर एक संकल्प लें कि शौर्य दिवस को शोध दिवस बनायेंगे। अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत रविन्द्र पुरी जी महाराज ने कहा कि वर्ष 2024 में हरिद्वार में यह कार्यक्रम विशाल रूप से आयोजित किया जायेगा।

 

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