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उत्तराखंड की धरती में इस स्थान पर हुआ था शिव और कृष्ण का युद्ध।

शिव
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बाणासुर एक महान् शिव भक्त राजा थे। अहंकार के कारण कुछ समय के लिए वे उन्मत्त हो गए थे शंकर जी ने अपने भक्त को अहंकार मुक्त करने के लिए श्री कृष्ण को आदेश दिया श्री कृष्ण और बाणासुर का महाभयानक संग्राम हुआ और यह सही संग्राम श्री शिव और श्री कृष्ण का संग्राम बना। अंततः बाणासुर के अहंकार की भुजाएं कटी। शिव और कृष्ण के युद्ध की यह रोचक गाथा भारत भूमि के अनेक स्थानों में गाई जाती है राजा बाणासुर के विराट साम्राज्य का वर्णन मिलता है हिमालय भूमि की पहाड़ियों से लेकर अनेक मैदानी भाग बाणासुर की गाथा से जुड़े हुए है।

हजार भुजाओं वाले महाबलशाली राजा बाणासुर की राजधानी को लेकर अलग-अलग दावे हैं इन्हीं दावों में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा का बारसूर क्षेत्र, बयाना क्षेत्र, श्रीनगर क्षेंत्र, हिमांचल क्षेत्र,राजस्थान क्षेत्र, सहित अनेकों भूभाग हैं,जहाँ की अपनी- अपनी कथायें है, इन्हीं भूभागों में उत्तराखण्ड़ क्षेत्र के अनेकों स्थानों को भी महा प्रतापी राजा बाणासुर की तपोभूमि के रुप में पुकारा जाता है।*कुमाऊं मंडल के जनपद चंपावत क्षेत्र के कर्णकरायत विशंग गांव को भी राजा बलि के पुत्र बाणासुर की राजधानी माना जाता है चलिए आपको लिए चलते हैं शब्द सुमन के रूप में जनपद चंपावत के कर्णकरायत गांव की ओर चम्पावत/हिमालय के ऑचल में स्थित चम्पावत का आध्यात्मिक महत्व बड़ा ही विराट है, एक से बढ़कर एक पावन स्थलों की लम्बी श्रृखंला अतीत के इतिहास को समेटे यहाँ की वशुंधरा में शोभायमान है, सदियों से आस्था, भक्ति ,रोमांच का संगम रहे यहाँ के तमाम पर्यटन एंव तीर्थस्थल अपनें आप में अद्भूत रहस्यों को समेटे हुए है। अद्भुत रहस्यों की ऐसी ही खान है,बाणासुर का किला।

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बाणासुर की गाथा एक महाप्रतापी शिव भक्त के रुप में वर्णित है,पाताल नरेश राजा बलि के पुत्र बाणासुर की नगरी बिशंग लोहावती नदी के तट पर बसा लोहाघाट से लगभग आठ किमी की दूरी पर सुनहरी पहाड़ी में कर्णकरायत नामक स्थान पर स्थित है।बाणासुर योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के युग द्वापर के विराट पात्र रहे है। श्री राम की लीला में भी सीता स्वंयबर में बाणासुर व रावण के सवांद का जिक्र आनें से इनका वैभव अद्भूत है। महादानवीर राजा बलि के सौ पुत्रौ में बाणासुर सबसे पराक्रमी थे। उनके शौर्य की गाथा सर्वविदित है।इनकी पत्नी अनौपम्या भी महान् शिव भक्त थी।

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बाणासुर को महाकाल, सहस्रबाहु भूतराज के नाम से भी पुकारा जाता है। शोणपुरी, शोणितपुर तथा लोहितपुर इसकी राजधानी कही गयी है।इन्हे शिवपुत्र की पदवी प्राप्त थी।
जनपद चम्पावत के कर्णकरायत क्षेंत्र से पराक्रमी बाणासुर की रोचक गाथा जुड़ी है। मान्यता है, कि राजा बाण ने यहाँ राज्य किया उत्तराखण्ड़ की धरती पर राजा बाण को लेकर श्री शिव व श्री कृष्ण में महाभयंकर युद्घ इसी क्षेंत्र में हुआ था।
इस विषय में पुराणों में रोचक गाथा मिलती है। महाभारत युद्ध के पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण ने परिवार सहित अपना वास द्वारिका में बसाया श्रीकृष्ण के पुत्र थे प्रद्युम्न और प्रद्युम्न के पुत्र थे अनिरुद्ध अर्थात् श्री कृष्ण के नाती इसी पौत्र को आधार बनाकर भगवान शिव के आदेश पर माता पार्वती की सहायता से श्रीकृष्ण ने बाणासुर का अहंकार नष्ट किया। कथाओं के अनुसार उषा और अनिरुद्ध एक दूसरे से प्रेम करते थे ,उषा शोणितपुर के राजा शिव भक्त बाणासुर की कन्या थी।बाणासुर ने अपनें तपोबल से शिवजी से वरदान प्राप्त था कि जब भी कोई संकट आएगा तो शिव उसकी रक्षा को उपस्थित होगें।

माता पार्वती ने स्वप्न की आभा से अनिरुद्ध के ऊषा को दर्शन कराकर प्रेम की ज्योति जलवायी राजकुमार के स्वप्न में दर्शन से ऊषा मिलन को व्याकुल हो उठी अपनी सखी चित्रलेखा की मदद से जो एक कुशल चित्रकार व कई विद्याओं की ज्ञाता थी तथा बाणासुर के मन्त्री कुभाण्ड़ की पुत्री थी।की मदद से समय पाकर उषा ने अनिरुद्ध से मिलने की इच्छा में अनिरुद्ध का अपहरण करवा लिया। दोनों ने गंधर्व विवाह किया था।

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बाणासुर को जब दोनों के प्रेम और विवाह की जानकारी हुई तो वह क्रोधित हो उठा और उसने क्रोध में आकर अनिरुद्ध को बंधक बनाकर कारागार में डाल दिया जब अनिरुद्ध के बंदी बनाए जाने की सूचना नारद द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को हुई तो उन्होंने बलराम जी को साथ लेकर सेना सहित बाणासुर के राज्य पर आक्रमण कर दिया श्रीकृष्ण की सेना को देखकर बाणासुर ने शिव को याद किया दोनों में भयंकर युद्घ हुआ लम्बें समय तक युद्ध का कोई निर्णय न आनें पर युद्ध भूमि में श्रीकृष्ण ने श्री शिव की गुप्त स्तुति कर उनसे बाणासुर का अहंकार नष्ट करने के लिए मार्ग प्रदान करनें का निवेदन किया श्रीकृष्ण के निवेदन पर शिवजी ने उन्हें एक अस्त्र प्रदान किया जिसे श्री कृष्ण ने शिव पर छोड़ा शिवजी को नींद सी आनें लगी इसी बीच मौका पाकर श्री कृष्ण ने बाणासुर की दो भुजाओं को छोड़ शेष सारी भुजाएं काट डाली। अन्त में जब बाणासुर का बध करनें के लिए श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र चलाया तो महादेव ने चक्र को रोक दिया।

हर व हरि की इस अद्भूत लीला को देखकर बाणासुर का अंहकार नष्ट हो गया। अब वह समझ चुका था हर व हरि एक ही है। असल में वह अपनें ईष्ट से ही युद्ध करता रहा युद्ध समाप्त होने के बाद बाणासुर ने भगवान शिव और भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी, बाणासुर ने कहा उसकी वजह से दोनों की बीच युद्ध हुआ इसलिए वह आत्मग्लानि से भर गया है।बाद बाणासुर ने अनिरुद्ध और उषा का विवाह करा दिया।
हिमालय भूमि का पावन क्षेत्र चम्पावत का कर्णकरायत विशंग गाँव बालीपुत्र बाणासुर की महान् गाथा का प्रतीक है। मुख्य मार्ग से लगभग ढ़ाई किमी की दूरी पर स्थित यह गाँव रहस्य रोमांच का अद्भूत संगम है।

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किले की दीवारें मनभावन का केंद्र है यह उसी बाणासुर की नगरी है जिस बाणासुर ने सीता स्वयंवर में पहुंचकर लंकापति रावण को अभिमान न करने की नसीहत दी थी यहां से हिमालय की चोटियों के दर्शन आखों को आनंद का आभास कराते हैं
किले की मजबूती का आज भी कोई जवाब नहीं है श्रीराम व श्री कृष्ण दोनों की ही लीलाओ में बाणासुर एक विराट व्यक्तित्व के रूप में वर्णित है हिमालयी क्षेत्र के अनेक भागों में बाणासुर की बिराट गाथा गायी जाती है

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