चलिए मैं आज आपको एक किस्सा और सुनाता हूं महान लोगों के बारे में की महान लोग किस तरह एक दूसरे को सम्मान देते हैं, यह किस्सा है रफी साहब का ,जिन्होंने सहगल साहब की साथ की खातिर कोरस में भी गाना गाया था।।
संगीतकार श्यामसुंदर गाबा लाहौर फिल्म इंडस्ट्री का माना हुआ नाम थे। फिल्मों में मोहम्मद रफी को पेश करने का सेहरा उनके सिर है। लाहौर में के एल सहगल के उस प्रोग्राम 1941 में जब बेचैन भीड़ काबू होने लगी तो 13 साल के रफी साहब को बिना माइक उस जलसे में पेश किया गया ,और बात बन गई ,कहते हैं के एल सहगल ने भी उन्हें बैकस्टेज पर सुना था। गाबा उस वक्त उस जलसे में मौजूद थे उन्हें आवाज और अंदाज बेहद पसंद आया।।
लाहौर उस वक्त पंजाबी फिल्मों का गढ़ था। उन्होंने ही रफी को पंजाबी फिल्म गुल बलोच 1944 में जीनत बेगम के साथ गवाया ।उसी साल ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन लाहौर में भी रफी को गाने के लिए बुलाया था । श्यामसुंदर गाबा का नाम जब भी संगीतकार ओपी नैयर के सामने आता तो कानों को हाथ लगाते थे कि क्या संगीतकार थे उन्होंने अपने गीतों में पंजाबी लोक धुनों का खूबसूरत इस्तेमाल किया है ,दीवाना बना देने वाली उनकी धुन “मौसम आया है रंगीन” गीत में गजब ढा ती है तो “साजन की गलियां छोड़ चले” बाजार 1949 में ,लता मंगेशकर अपने 10 चुनिंदा गानों में शुमार करती हैं उन्होंने नूरजहां तलत महमूद जीएम दुर्रानी अमीरबाई शमशाद बेगम और सुरैया समेत कई हस्तियों को गवाया।।
श्यामसुंदर भी कैरियर बनाने मुंबई चले आए थे यहीं उन्होंने गांव की गोरी 1944 में रफी को जीएम दुर्रानी के साथ “अजी दिल हो बेकाबू में, तो दिलदार की ऐसी तैसी” पहला हिंदी गीत रिकॉर्ड कराया ।लाहौर के दिनों से मास्टर गुलाम मोहम्मद हैदर के संगीत के दीवाने रहे श्यामसुंदर केवल 10 साल के कैरियर में बेहतरीन काम दिखा कम उम्र में रुखसत हो गए । उनके संगीत के दीवाने उनके खास दोस्त संगीतकार मदन मोहन ने उनकी आखिरी फिल्म अलिफ लैला का अधूरा काम पूरा किया था फिल्मी दुनिया में रहकर भी सादगी से संत की सी जिंदगी जीने वाले रफी के इंडस्ट्री में लता मंगेशकर से रॉयल्टी की मांग को लेकर विवाद के सिवा कोई और किस्सा सुनने में नहीं आता।।
चूहा दौड़ से बचने वाले रफी आखिरी दिनों में गिनीज बुक में 1977 के सबसे ज्यादा गीत गाने वालों में लता मंगेशकर का नाम आने पर अपना दावा पेश करने से भी सुर्खियों में रहे हालांकि गिनेस ने लता मंगेशकर मोहम्मद रफी के 25 और 26 हजार गानों के दावों को खारिज कर, मोहम्मद रफी के साथ सबसे ज्यादा गीत गाने वाली आशा भोसले के नाम गिनीज बुक 1984 का हिंदी फिल्मों में सबसे ज्यादा गीत गाने का रिकॉर्ड है। उन्होंने मर्दानी आवाज और शास्त्रीय संगीत पर पकड़ रखने वाले गायक मन्ना डे के साथ सबसे ज्यादा गीत गाए हैं। मन्ना डे उनके पड़ोसी और फिल्मी दुनिया के इकलौते पारिवारिक मित्र भी रहे हैं।।।
दरअसल गीत तो कई रिकॉर्ड होते हैं ,कुछ को रखा जाता है, और कई डब्बा बंद भी हो जाते हैं । जानकारों के मुताबिक 7405 गानों का रिकॉर्ड मिलता है लेकिन सबसे ज्यादा भाषाओं में गाने का ताज रफी साहब के नाम ही है, जिसमें 14 भारतीय भाषाओं और इंग्लिश अरबी सिंहली समेत चार विदेशी भाषाएं हैं, अन्य भाषाओं के गीतों की कुल तादाद 162 है। अपनी दोनों ही कामयाब फिल्मों जुगनू और लैला मजनू में किरदार निभाते पर्दे पर दिखे रफी ने तकरीबन 517 किरदारों को अपनी आवाज उधार दी। रफी ने 60 के दशक में कल्ट बन गई फिल्म mughal-e-azam का गीत” ए मोहब्बत जिंदाबाद “100 गायको के कोरस के संग गाया था । संगीतकार नौशाद के संगीत में रफ़ी के गाए यहां” बदला वफा का बेवफाई के सिवा क्या है “फिल्म जुगनू 1947 के वक्त उनकी आवाज ताजा झोंके की तरह आई।।
के एल सहगल के दीवाने रहे रफी के शुरू के गीतों पर जीएम दुर्रानी की गायकी की साफ छाप देखी जा सकती है। उनके साथ गाने के बावजूद सहगल के साथ गाने की ख्वाहिश पूरी करने उन्होंने नौशाद के संगीत निर्देशन में कोरस में भी गाना गालिया था। वह गीत था “मेरे सपनों की रानी रूही रूही रूही “फिल्म शाहजहां 1946 जिसमें वह सिर्फ रूही रूही दोहराते हैं । इसे याद कर नौशाद कहते हैं सबसे पहले रफी ने मेरे लिए कोरस में ही गाया था। अपने भाई के साथ मेरे पास मेरे अब्बा का लखनऊ से खत लाए थे, उस वक्त कोई गाना नहीं था तो मैंने उन्हें कोरस में गाने को कहा जिसे उन्होंने मंजूर कर लिया था। जिसके लिए उन्हें ₹10 दिए गए थे।