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धराली का रौद्र संदेश

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पार्थसारथि थपलियाल
भगवान शिव कैलास (हिमालय) में विराजते है, हिमालय की पुत्री, जो शिव जी की पत्नी देवी पार्वती हिमालय की अधिष्ठात्री देवी हैं। इसीदेवी के अनेक रूपों/ नामों से उत्तराखंड में गांव गांव में पूजा अर्चना होती है। कुछ देवियों के नाम हैं-
नंदादेवी, भुवनेश्वरी, ज्वालपा देवी, सुरकंडा, चंद्रबदनी, धारी देवी, राजराजेश्वरी, बाल कुंवारी, कुंजापुरी, नैनादेवी, पूर्णागिरी, चंडीदेवी, मनसा देवी, कसार देवी, वाराही देवी, कालिका देवी, मैठाणादेवी आदि। भगवान विष्णु, बदरीनाथ रूप में हैं। भगवान शिव, केदारनाथ रूप में हैं। इनके पांच पांच रूप पंच बदरी और पंच केदार इसी देवभूमि में विराजमान हैं। हिमालय की कंदराओं में अनेक तपस्वी तप में लीन रहते हैं।
उत्तराखंड वासी जानते हैं कि उत्तराखंड में जिस अवैज्ञानिक ढंग से विकास की गतिविधियां पिछले 50-60 सालों से चलाई जा रही हैं, उससे होने वाली हानि के प्रति प्रकृति अनेक बार चेतावनी देती रही। सुरंगों पर किये गये हजारों विस्फोट, सड़कों के लिए तोड़ी गई चट्टाने, जलविद्युत परियोजनाओं का स्थापन, पर्वतीय क्षेत्रों में रिजोर्ट और बहुमंजिला होटलों का निर्माण, अनियोजित कस्बों और बाजारों का स्थापन हिमालय को रुला देते हैं।
आठवें दशक में सुंदर लाल बहुगुणा, चंडीप्रसाद भट्ट, धूम सिंह नेगी, गौरादेवी और उनके संगठनों ने सरकारों को सावधान किया। केवल पिछले 40 सालों में शिव जी ने अपना रौद्र रूप दिखाकर पारिस्थितिकी और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ न करने के आदेश दिए, लेकिन व्यवस्था नहीं मानी। ये संकेतात्मक आदेश इन घटनाओं में निहित थे-
उत्तरकाशी में 1991 में भूकंप आया, लगभग 3000 लोगों की जाने गई। 7,500 घर क्षतिग्रस्त हुए। 3 लाख लोग प्रभावित हुए। 300 करोड़ रुपए की संपत्ति तबाह हो गयी। (2) 1998 में मालपा (पिथोड़ागढ़) में भूस्खलन हुआ। 300 लोगों की जाने गई। (3) 1999 में चमोली में आए भूकंप में 100 लोगों की जानें गई। (4) 2013 में केदारनाथ बाढ़ विभीषिका में 5,700 लोगों की जानें गईं। (5) 2021 में ग्लेशियर फटने से 200 लोग काल कवलित हुए। (6) 2022 में द्रोपदी डांडा हिमस्खलन में भी 200 लोगों की जानें गईं। (7) 2023 बाढ़ (8) धराली हर्षिल में 5 अगस्त 2025 को जो तबाही दिन दोपहर में देखी गई उसने लोगों को बचाव के लिए 20 सेकंड का समय भी नहीं दिया।
पूरा हिमालय दरक रहा है। प्रकृति हमें बहुत कुछ देती है। जब वह क्षीणता को प्राप्त होती है तो संहार करने पर उतर आती है। शिव अपने रुद्रावतार में आकर तांडव नृत्य करने लगते हैं। प्रकृति संरक्षण हिमालयी लोगों का संस्कार है। पहाड़ में पेड़ पौधों और जंगलों के साथ दोस्ती रहती है। आधुनिकता ने जीवन और संस्कृति दोनों के साथ छेड़छाड़ की, हिमालय की पारिस्थितिकी बिगड़ चुकी है। उचित समय पर उत्तराखंड में मानव हितकर संसाधनों के अभाव में लोग पलायन करते गये। विकास कार्य पारिस्थितिकी के अनुकूल न होने के कारण कभी अतिवृष्टि कभी अनावृष्टि, कभी बादल फटना, कभी बाढ़ आना यह प्रकृति का स्वभाव बन गया है। बेताहासा सड़कों का बनना, विस्फोटकों से सुरंगों को बनाना, पहाड़ों को काटना, नदियों पर जगह-जगह बांध बनाना, पेड़ों की कटाई, जंगलों में आग लगना, पारंपरिक पहाड़ी मकानों के स्थान पर बहुमंजिला भवन निर्माण करना, नदियों को प्रदूषित करना, नदियों के तटों पर नवनिर्माण करना, धार्मिक यात्रा की जगह तीर्थस्थानों पर अनियंत्रित व्यावसायिक पर्यटन का बढना, पहाड़ी क्षेत्रों में अपराधियों द्वारा चालाकी से जमीनें खरीदना जैसे कुछ कारण हैं जिस कारण हिमालय के देवाधिदेव आपदा के रुद्रावतार में संहारक की भूमिका निभाने उतर आते हैं। पारिस्थितिकी में जन जीवन और संस्कृति भी शामिल है। पर्यटन अपसंस्कृति को बढ़ावा देता है जबकि तीर्थ यात्रा सात्विकता को बढ़ाती है। हिमालय तभी सुरक्षित है जबतक हमारी यह श्रद्धा है कि हिमालय देवभूमि है। बाजार हमारी आवश्यकताओं के लिए आवश्यक है, बाजारवाद विलासिता को बढाता है, यह प्रवृत्ति पश्चिमी सभ्यता की देन है। इस बाज़ारवाद से मल्टिनैशनल कंपनियां अपने उत्पादों को बेचती हैं। हमारी संस्कृति को खत्म करना उनका उद्देश्य है।
हिमालयी क्षेत्र में जो आपदाएं आई हैं उनका न्यूनीकरण नहीं किया जा रहा है। इसे रोकने के लिए हिमालयी क्षेत्रों के राज्यों को पर्यावरण, पारिस्थितिकी, सिविल इंजीनियरिंग और स्थानीय अनुभवी सामाजिक विशेषज्ञों को मिलाकर एक अध्ययन दल के माध्यम से दीर्घ कालिक योजनाओं की अनुशंसा सरकारों को देनी चाहिए। उत्तराखंड में चमोली और बागेश्वर में उच्च वैज्ञानिक क्षमता वाले प्रकृति विज्ञान केन्द्र स्थापित किए जाएं, जिससे क्षेत्र की पारिस्थितिकी और मौसम संबंधी सूचनाएं उपयुक्त समय पर प्राप्त हो सकें। पहाड़ में लोग अपने ईष्ट देव और पौराणिक देवताओं में बहुत आस्था रखते हैं। शिव, शक्ति और विष्णु की यह देवभूमि पौराणिक संस्कृति के संरक्षक बने रहें, यह धराली (उत्तरकाशी) कैलास पति शिव का रौद्र संदेश है। इसे पढ़ने और समझने की आवश्यकता है।

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