मैं 194 साल का हूं, लेकिन तमन्ना अभी मरी नहीं है। अब भी मैं सूखे हलकों को नम करने का काम करता हूं। जो कोई प्यासा है वह मेरे पास आता है, मैं उसे पानी के बिना पीड़ित नहीं होने देता। हाँ! इस समय तो मैं ठीक हूं, लेकिन नौकरों ने मेरी बाहरी स्थिति को जीर्ण-शीर्ण कर दिया है। फिर भी लोगों की प्यास बुझाने का जज्बा कम नहीं हुआ है और मैं बिना किसी झिझक के अपना काम कर रहा हूं.
मैं 194 साल का हूं, लेकिन तमन्ना अभी मरी नहीं है। अब भी मैं सूखे हलकों को नम करने का काम करता हूं। जो कोई प्यासा है वह मेरे पास आता है, मैं उसे पानी के बिना पीड़ित नहीं होने देता। हाँ! इस समय तो मैं ठीक हूं, लेकिन नौकरों ने मेरी बाहरी स्थिति को जीर्ण-शीर्ण कर दिया है। फिर भी लोगों की प्यास बुझाने का जज्बा कम नहीं हुआ है और मैं बिना देर किए अपना काम कर रहा हूं. ‘भले ही पहले के मुकाबले कुएं में पानी कम हो गया हो, लेकिन आज भी आसपास के लोग इसके पानी पर निर्भर हैं। हुह। हाथीपांव, जॉर्ज एवरेस्ट, क्लाउड एंड, दुधली समेत आसपास आने वाले पर्यटक कुएं को देखने जरूर आते हैं। इसको लेकर शहर के बुजुर्गों में कई मान्यताएं भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि अगर कोई पीछे मुड़कर कुएं में सिक्का या अंगूठी डाल दे तो उसकी मनोकामना पूरी होती है। आज भी जब कई लोग इस इलाके में घूमने आते हैं तो कुएं में सिक्के जरूर डालते हैं। इसने कुएं को विशिंग वेल का नाम भी दिया है।
मसूरी : 194 साल पुराना विशिंग वेल आज भी लोगों के सूखे घेरे को सोख रहा है.
Advertisement
Advertisement
Advertisement