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आटो रिक्शा और विक्रम देहरादून के परिवहन की लाइफ लाइन

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नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने की आटो रिक्शा और विक्रम देहरादून के परिवहन की लाइफ लाइन हैं। इसी से इस शहर में आवागमन होता है। परिवहन स्वामियों के हजारों परिवार इन वाहनों से पलते हैं। पर इनके साथ षड़यंत्र हो रहा है। इन परिवारों की रोटी छीनने की कोशिश सरकार कर रही है। इन परिवारों के साथ- साथ राजधानी की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को भी छिन्न- भिन्न करने की साजिश लग रही। अभी कोई वैध नोटिफिकेशन सार्वजनिक पटल पर नहीं आया है। लेकिन दिनांक 1 नवबंर 2022 को संभागीय परिवहन प्राधिकरण की बैठक के बाद से समाचार पत्रों और सभी तरह के मीडिया में यह प्रचारित किया जा रहा है कि 31 दिसंबर 2023 तक देहरादून शहर के भीतर से डीजल के आटो रिक्शा एंव विक्र्रमों को बाहर कर दिया जाएगा। डीजल से चलने वाले इन वाहनों को बदल कर इन छोटी गाडियों से पेट पालने वालों को एलपीजी और सीएनजी गाडियों को ले लेना होगा।
इन वाहन स्वामियों पर दोहरी मार पड़ने वाली है क्योंकि इनके ऊंपर पहले ही डीजल वाहनों का कर्जा है अब इनको कर्जा लेकर फिर से एलपीजी और सीएनजी वाहन लेने पड़ेगे। यदि इतना बड़ा निर्णय संभागीय परिवहन प्राधिकरण ने ले लिया है तो इन छोटे परिवहन व्यवसायियों का मत भी पूछा जाना चाहिए था। इसलिए ये छोटे कारोबारी हड़ताल पर हैं। इनकी यूनियन इस मामले को उच्च न्यायालय में जीत चुकी है। सरकार को बताना चाहिए आखिर क्या बाध्यता थी कि , संभागीय परिवहन प्राधिकरण ने यह निर्णय ले लिया। इसे प्रचारित तो बहुत किया जा रहा है लिकिन इस सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। इसलिए सरकार को इस तथ्य को सार्वजनिक करना चाहिए कि वास्तविक स्थिति क्या है? यदि यह सच है तो एक साल में देहरादून शहर के सभी परिवहन स्वामियों को अपने आटो रिक्शा और विक्रम बदल कर एलपीजी या सीएनजी के कर देने हैं। शहर के आटो डीलरों के पर एलपीजी सीएनजी के वाहन उपलब्ध नहीं हैं। कहां से इतने वाहन आऐंगे? इस निर्णय में बड़ी मिली-भगत की गंध आ रही है। जिस दिन संभागीय परिवहन प्राधिकरण् में यह निर्णय लिया गया उसी दिन शहर में इन वाहनों की कीमत में 50 हजार रुपए की वृद्धि कर दी गई। एलपीजी या सीएनजी वाहनों की उपलब्धता ही नहीं देहरादून शहर में सीएनजी को रिफ्यूल करने के लिए आज के दिन केवल 4 पम्प हैं। इन पम्पों पर रात भर से दिल्ली आदि से आने वाले पर्यटकों के वाहनों को रीफिल करने की लाइन लगी रहती है। रात भर खड़े रहने पर सीएनजी नहीं मिलती पाता है तो फिर इन छोटे वाहन स्वामियों की रोजी-रोटी चलेगी। अभी नए पम्पों को खोलने और सीएनजी उपलब्ध कराने की कोई रणनीति नहीं है और परिवहन स्वामियों को इन वाहनों को खरीदने के लिए कहा जा रहा है। देहरादून शहर के भीतर डीजल के आटो रिक्शा और विक्रम ही आम आदमी की सवारी है। यदि देहरादून शहर से इन वाहनों को बाहर निकालने का तुगलगी आदेश लागू कर दिया गया तो शहर की परिवहन व्यवस्था तो बिगड़ेगी ही हजारों लोगों को रोजी-रोटी का संकट भी होगा।

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