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6 जून को रखा जाएगा निर्जला एकादशी का व्रत

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देहरादून, 19 अप्रैल। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुये बताया की निर्जला एकादशी व्रत की तिथि​​ ज्येष्ठ माह का शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की 6 जून 2025 को रात 02 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगी जिसका समापन अगले दिन 7 जून 2025 को सुबह 4 बजकर 47 मिनट पर होगा।
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुये बताया की हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी का बहुत ही खास महत्व माना गया है। निर्जला एकादशी का व्रत हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस साल निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा होती है। लोग इस दिन बिना पानी पिए व्रत रखते हैं। निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी एकादशियों के व्रत का फल मिलता है और सारे पाप धुल जाते हैं। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि का बहुत महत्व है और इस दिन लोग बिना पानी पिए व्रत रखते हैं, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। पंचांग के अनुसार, 6 जून को रात 2 बजकर 15 मिनट पर एकादशी तिथि शुरू हो जाएगी। यह तिथि अगले दिन, यानी 7 जून को सुबह 4 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए, निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून को रखा जाएगा और एकादशी व्रत का पारण हमेशा द्वादशी तिथि में किया जाता है इसलिए, निर्जला एकादशी व्रत का पारण 7 जून को होगा। निर्जला एकादशी का पौराणिक महत्‍व बहुत खास माना जाता है। एक बार व्‍यासजी के कहने पर पांडवों में भीम ने यह व्रत रखा था, तब से इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। भीम ने मोक्ष की प्राप्ति के लिए य‍ह व्रत रखा था। माना जाता है एकादशी के इस व्रत को करने से साल भर की सभी एकादशियों का व्रत करने के बराबर पुण्‍य मिलता है। निर्जला एकादशी का व्रत बहुत खास माना जाता है, ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से सारे पाप धुल जाते हैं। साथ ही, भगवान विष्णु की कृपा भी मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत करने वाले को मरने के बाद मोक्ष मिलता है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है और व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास भी होता है। इस दिन अन्न और धन का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा करने से धन लाभ होता है और तिजोरी हमेशा भरी रहती है। निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए और मन में भगवान का स्मरण करके मंदिर की सफाई करनी चाहिए। व्रत का संकल्प लेकर, विष्णु और लक्ष्मी की मूर्ति लकड़ी की चौकी स्थापित करके पर विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। भगवान को पीले फल और मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाना चाहिए, विष्णु सहस्रनाम और विष्णु चालीसा का पाठ करना चाहिए। पूरे दिन श्रद्धा से व्रत रखना चाहिए और पूजा-पाठ में मन लगाना चाहिए।

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