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दुर्लभ संयोग से भरा हुआ है इस बार का श्रावण मास

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देहरादून। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुये बताया की हिंदू धर्म में श्रावण मास का विशेष धार्मिक महत्व होता है। इसे साल का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने को श्रावण महीना या सावन मास भी कहते हैं। श्रावण में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा बहुत श्रद्धा और भक्ति भाव से की जाती है। इस बार के सावन माह दो दुलर्भ संयोगों से भरा हुआ है। पहला तो इस बार श्रावण मास की शुरुआत सोमवार के पवित्र दिन से शुरू हो रहा है। दूसरा इस बार पूरे सावन में कुल 5 सोमवार के दिन पड़ेंगे। इस साल का सावन बहुत खास है, क्योंकि इसकी शुरुआत ही भगवान शिव के दिन यानी सोमवार सो हो रही है साथ ही इस सोमवार को प्रीति आयुष्मान योग के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। इसको लेकर ऐसी मान्यता है कि जो भी इस योग में पूजा करता है उसको भगवान शिव से कई गुना फल की प्राप्ति होती है। इस साल का श्रावण मास 21 जुलाई 2024 से शुरू होगा और 30 दिन यानी लगभग एक महीने बाद 19 अगस्त 2024 को खत्म होगा। इस पावन मास में श्रद्धालु भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करते हैं। श्रावण मास में ज्यादातर श्रद्धालु सोमवार के दिन व्रत रखते हैं और भगवान शिव की शुद्ध मन से पूजा करते हैं। अविवाहित लड़कियां श्रावण के हर मंगलवार को मंगला गौरी का व्रत रखती हैं। कुछ महिलाएं मनचाहा पति पाने के लिए सोमवार व्रत करती हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। श्रावण के दौरान कांवड़ यात्रा भी बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें श्रद्धालु पवित्र गंगा के पास विभिन्न धार्मिक स्थानों पर जाते हैं और वहां से गंगाजल लाकर शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को चढ़ाते हैं। हिंदू धर्म के ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय निकले सारे जहर को भगवान शिव ने पी लिया था। ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि वो विष इतना खतरनाक था कि वो पूरी दुनिया को खत्म कर सकता था। भगवान शिव ने सारे विष को पीकर दुनिया और जीव जंतुओं को बचा लिया, लेकिन वो जहर उनके गले में ही रह गया। इसी वजह से उन्हें नीलकंठ कहा जाता है। इसके बाद सभी देवी-देवताओं और राक्षसों ने भगवान शिव को गंगाजल और दूध पिलाया ताकि जहर का असर कम हो सके। यही कारण है कि श्रावण में लोग दूर-दूर से गंगाजल लाकर भगवान शिव को चढ़ाते हैं।

श्रावण पूजा विधि  :-

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श्रद्धालु सुबह जल्दी उठकर पूजा शुरू करने से पहले स्नान करें। भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा रखें, दीप जलाएं और प्रार्थना करें। शिव चालीसा, शिव तांडव स्तोत्र और श्रावण मास कथा का पाठ करें। शिव मंदिर जाएं और शिवलिंग पर पंचामृत (दूध, दही, शक्कर, शहद और घी) चढ़ाएं। शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और फूलों और बेलपत्र से सजाएं। बेलपत्र भगवान शिव को बहुत प्रिय है। भगवान शिव को मिठाई का भोग लगाएं। अंत में भक्तों के माथे पर चंदन का लेप लगाएं और इत्र छिड़कें।

 

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