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क्या अमरनाथ धाम से मिल रहा है बडा संकेत क्या समय के साथ लुप्त हो जाएंगे बाबा बर्फानी? अमरनाथ धाम पर भी सत्य हो गयी भविष्य मालिका
आज हम बात करेंगे अमरनाथ धाम में घट रही उस घटना की जिसे भविष्य मालिका की भविष्यवाणियों से जोडकर देखा जा रहा है। अमरनाथ धाम का महत्व बाबा भोलेनाथ का परमधाम अमरनाथ जम्मू कश्मीर के अनंतनाग जिले में है। अमरनाथ की ऊंचाई समुद्रतल से लगभग साढे पांच हजार मीटर है। यहाँ हर साल प्राकृतिक तरीके से बर्फ का ठोस शिवलिंग बनता है।
शिवलिंग चाँद की रोशनी के साथ बढ़ता है और घटता भी है। प्राकृतिक बर्फ से बनने की वजह से इस शिवलिंग को स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं।
अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मान्यता है कि इस गुफा में भगवान शंकर ने माँ पार्वती को अमृत्व का महत्व बताया था।
ऐसी भी मान्यता है कि हर साल यहां भगवान शिव, देवी पार्वती और पुत्र गणेश भक्तों को दर्शन देने के लिए के शिवलिंग के रूप में प्रकट होते हैं। इस शिवलिंग को बाबा हिमलिंग और बाबा बर्फानी के नाम से लोग मानते हैं।
हर साल हिंदू पंचांग के मुताबिक यात्रा के दिन तय होते हैं। आमतौर पर यात्रा जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई के पहले सप्ताह में शुरु हो कर रक्षा बंधन के दिन छडी मुबारक की रस्म के साथ समाप्त हो जाती है।
अमरनाथ की पवित्र गुफा की लंबाई 19 मीटर, चौडाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर है। अमरनाथ यात्रा का महत्व अमरनाथ यात्रा एक कठिन यात्रा है,
इसमें बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा से पहले कुल पाँच पड़ाव होते हैं।
आइए जानते हैं इन पाँच पडाव के महत्व के बारे में
पहला पडाव पहलगाम
मान्यता है कि भगवान शिव जब पार्वती को अमरत्व की कथा सुनने के लिए किसी गुप्त स्थान की तलाश कर रहे थे तो सबसे पहले उन्होंने नंदी को छोड दिया था। जिस स्थान पर उन्होंने नंदी को छोडा था वो आज पहलगाम में है। पहलगाम से ही यात्रा की शुरुआत होती है।
दूसरा पडाव चंदनबाडी
मान्यता है कि थोडी दूर पर जाकर भगवान शिव ने अपनी जटाओं में विराजमान चंद्रमा को अलग कर दिया था। इसी स्थान पर उन्होंने अपने माथे पर लगी चंदन और भूत को उतार भी दिया था। इसीलिए इस स्थान को चंदनबाडी कहते हैं। स्थान की मिट्टी को बहुत पवित्र माना जाता है। इसीलिए शिवभक्त यहाँ से मिट्टी को माथे पर
लगाते हैं और यात्रा के अगले पडाव की ओर बढते हैं।
तीसरा पडाव पिस्सू घाटी
यात्रा के इस पडाव तक पहुंचने तक यात्री बहुत ज्यादा थक जाते हैं और उनकी चाल पिस्सू जैसी हो जाती है। इसीलिए स्थान को पिस्सु घाटी कहते हैं। मान्यता है कि भोलेनाथ की भक्ति की शक्ति से ही श्रद्धालु यात्रा के इस पडाव को पार कर अगले पडाव तक पहुँच पाते हैं।
चौथा पडाव शेषनाग जील
ऐसी मान्यता है कि शेषनाग झील में शेषनाग का वास है। यात्रा के दौरान यहाँ महादेव ने अपने गले से सबको उतार दिया था। झील की बनावट एक नाक की तरह है मानो शेषनाग फन फैलाकर बैठा हो।
शिवभक्तों की मान्यता है कि यहाँ हर दिन एक ना एक बार शेषनाग दर्शन देते हैं।
पांचवां पढाव, महागुनस पर्वत
या गणेश टॉप मान्यता है कि महागुनस पर्वत स्थान पर। भोलेनाथ ने अपने पुत्र गणेश को बैठा दिया था। इसलिए इस स्थान को महागणेश पर्वत या गणेश टॉप भी कहा जाता है। यात्रा के पाँच पडाव पार कर लेने के बाद शिवभक्त पहुँचते हैं अपने गंतव्य यानी बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा में।
इस छठे पडाव पर पहुँचते ही भक्त यात्रा की थकान और कष्टों को भूल जाते हैं। अब हम जानते हैं कि क्या है भविष्य मालिका की भविष्यवाणियों का संबंध अमरनाथ धाम से? ओडिशा के महान संत संत अच्युतानंद और चार साथी महान संघ जिन्हें पाँच लाख नाम से जाना जाता है उन्होंने अपने ग्रंथ भविष्य मालिका में पुराने देव स्थानों को लेकर कई महत्वपूर्ण भविष्यवाणियां की हैं। भविष्य मालिका की भविष्यवाणियाँ
सोलहवीं सदी में पुरानी भाषा में लिखे गए ग्रंथ भविष्य मालिका में पुराने देव, स्थानों और भक्तों को लेकर वर्णन किया गया है,
नंबर एक कलयुग के अंत के संकेत हमें चारों धाम और पुरातन मंदिरों से देखने को मिलेंगे।
नंबर दो कलयुग के अंतिम कालखंड और महाविनाश के दौर में प्राकृतिक बदलावों से कई देव स्थान लुप्त हो जाएँगे और कई लुप्त होने की अवस्था में आ जाएँगे। इसकी मुख्य वजह धरती का तापमान और तेज गर्मी होगी।
नंबर तीन स्थानों की ऐसी स्थिति इसलिए भी होगी क्योंकि लोग ईश्वर को भूल जाएँगे और उनके खिलाफ बोलना शुरू कर देंगे। संसार में धर्म का अनुसरण करने वाले लोग बहुत कम रह जाएँगे। भगवान का अपमान होगा और भक्तों को कष्ट उठाना पडेगा।
नंबर चार कई पुराने देव स्थानो को
नुकसान पहुंचेगा जब चीन और तेरह मुस्लिम देश भारत पर हमला करेंगे लेकिन देवी के प्रकोप से और भगवान कल्कि की शक्ति से वो सफल नहीं हो पाएंगे।
नंबर पाँच महाविनाश के बाद भगवान कल्कि यानी अनंत माधव इन स्थानों की पुनर्स्थापना करेंगे। यहाँ हम आपको बता दें कि भविष्य मालिका में कलयुग के अंतिम कालखंड और युग परिवर्तन का संदर्भ साल 2022 से 2029 के बीच होने वाली घटनाओं से है। भविष्य मालिका के अनुसार दुनिया संधिकाल में है। महाविनाश और युग परिवर्तन का दौर भी शुरू हो चुका है। यानी साल 2029 तक हम दुनिया भर में बडे प्राकृतिक बदलाव देखेंगे।
अमरनाथ धाम में क्या हो रहा है? अमरनाथ धाम का पवित्र शिवलिंग लगातार साल दर साल पिंगल रहा है। खास तौर पर 2013 से हर साल यात्रा के वक्त ये बहुत जल्दी पिघल जाता है।
नतीजा यह है कि जो भक्त आखिरी के सप्ताह में बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं तो उन्हें पवित्र गुफा के ही दर्शन हो पाते हैं क्योंकि बाबा अमरनाथ तब तक अंतर्ध्यान हो चुके होते हैं। बाबा अमरनाथ हर साल जल्दी लुप्त हो रहे हैं। धरती के बढते तापमान की वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से
ना की पवित्र शिवलिंग जल्दी पिघल जाता है बल्कि पूरे आकार में इसकी ऊंचाई भी साल दर साल कम होती जा रही है। यानी जैसा की भविष्य मालिका में 500 साल पहले लिखा गया था वो हकीकत में हमारी आँखों के सामने है। अमरनाथ धाम में पवित्र शिवलिंग का आकार छोटा होना और जल्दी पिघल जाना कलयुग के अंत का बहुत बडा संकेत है।
लेकिन शिवभक्तों को परेशान होने की जरूरत नहीं है। महाविनाश के बाद यानी साल 2029 के बाद नए युग की धर्म स्थापना के वक्त भगवान कल्कि सभी पुराने देवस्थानों
का पुनः निर्माण कराएँगे। हाँ, भविष्य मालिका में भगवान कल्कि को अनंत माधव कहा गया है। यानी उनमें भगवान शिव और विष्णु दोनों की शक्तियां है। इसीलिए भगवान कल्कि को विष्णु के दस अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है। यहाँ हम आपको बता दें कि भविष्य मालिका के मुताबिक चाहे दुनिया में जो भी हो, कैसी भी मुश्किलें लेकिन मन के सच्चे लोगों को डरने की जरूरत नहीं है। भगवान खुद युग परिवर्तन के दौर में उनकी रक्षा करेंगे। भविष्य मालिका की भविष्यवाणियों के बारे में आप क्या सोचते हैं और आपको ये कितना सही लगता है
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