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उत्तराखंड

शिवरात्रि 2022: सबसे पहले इसी धाम से शुरू हुई थी शिवलिंग पूजा, जाग्रत रूप में यहां मौजूद हैं भगवान शिव

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देवभूमि उत्तराखंड का विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर धाम अपार आस्था का केंद्र है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सबसे पहले शिवलिंग की पूजा जागेश्वर धाम से ही शुरू हुई थी। यहां भगवान शिव जाग्रत रूप में विराजमान हैं। जागेश्वर 12 ज्योतिर्लिंगों में आठवें स्थान पर है। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य यहां आए और अपनी मान्यता को फिर से स्थापित किया।

जागेश्वर धाम अल्मोड़ा से 38 किमी दूर घने देवदार के जंगलों के बीच स्थित है। जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 छोटे-बड़े मंदिर हैं। इनका निर्माण 7वीं और 18वीं शताब्दी के बीच माना जाता है। मंदिर भगवान शिव और योगेश्वर (जगेश्वर), मृत्युंजय, केदारेश्वर, नव दुर्गा, सूर्य, नवग्रह, लकुलिश, बालेश्वर, पुष्टिदेवी और कालिका देवी सहित अन्य देवताओं को समर्पित हैं।

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कत्यूरी शासकों ने 7वीं शताब्दी और 14वीं शताब्दी के बीच इन मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार किया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, देहरादून मंडल द्वारा मंदिर समूह को राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। पंडित शुभम भट्ट ने बताया कि यहां स्थापित शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में आठवां है। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने यहां आकर मंदिर की मान्यता को बहाल किया।

जागेश्वर मंदिर प्राचीन कैलाश मानसरोवर मार्ग पर स्थित है। मानसरोवर तीर्थयात्री यहां पूजा-अर्चना करने के बाद ही आगे बढ़ते थे। मंदिर नागर शैली का है। यहां स्थापित मंदिरों की विशेषता यह है कि उनके शिखर में लकड़ी का बिजौरा (छतरी) है, जो बारिश और बर्फबारी के दौरान मंदिर की रक्षा करता है। जगनाथ मंदिर में भैरव को द्वारपाल के रूप में दर्शाया गया है। जागेश्वर भी लकुलिश संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था। लकुलिश संप्रदाय को शिव का 28वां अवतार माना जाता है।

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चंद शासकों ने पूजा की सुचारु व्यवस्था के लिए अपनी जागीर से जागेश्वर धाम को 365 गांव समर्पित किए थे। मंदिर में इस्तेमाल होने वाले भोग आदि की सामग्री इन्हीं गांवों से आती थी। जागेश्वर मंदिर में राजा दीप चंद और पवन चंद की धातु से बनी मूर्तियां भी स्थापित हैं।

जागेश्वर धाम के साथ कई अनूठी परंपराएं जुड़ी हुई हैं। यहां श्रावण चतुर्दशी पर्व पर निःसंतान महिलाएं हाथ में दीया लेकर पूरी रात तपस्या करती हैं। महिलाएं एक ही मुद्रा में पालकी में बैठकर या दोनों पैरों पर खड़े होकर रात भर तपस्या करती हैं।

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