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देश का इकलौता मंदिर जहां भगवानों के साथ होती है देशभक्तों की पूजा

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हरिद्वार।

हरिद्वार का भारत माता मंदिर धार्मिक आस्था और राष्ट्र प्रेम की जुगलबंदी की अनूठी मिसाल है। यह देश का इकलौता मंदिर है जहां भगवानों के साथ देश पर जां लुटाने वाले शहीदों, देशभक्तों की पूजा होती है। अलबत्ता, यहां कोई कर्मकांड नहीं होता। मंदिर में देवी-देवताओं के साथ संत-महापुरुषों और स्वतंत्रता सेेनानियों के दर्शन होते हैं। मंदिर के द्वार मानवमात्र के लिए खुले हैं। चाहे वह किसी भी जाति या मजहब का हो। आठ मंजिला विशाल मंदिर में देशभर से रोजाना हजारों लोग शिव परिवार, विष्णु अवतार और नवदुर्गा से लेकर महान संतों एवं सेनानियों की प्रतिमाओं के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। समन्वय सेवा ट्रस्ट का अनोखा मंदिर हरिद्वार सप्तसरोवर में बना है।

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परम हंस परिव्राजकाचार्य निवृत्त जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद ने मंदिर का निर्माण ही देश को एकसूत्र में पिरोने, सर्वधर्म संप्रदाय मानव कल्याण, राष्ट्रीय सांस्कृतिक एवं देश के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति जागृत करने के मकसद से कराया। मंदिर के ग्राउंड फ्लोर में भारत माता की विशाल प्रतिमा है। आठ मंजिल के मंदिर में प्रत्येक फ्लोर में एक अलग दुनिया है। श्रद्धालु अपने आराध्य देवी-देवताओं, संतों, महापुरुषों, देवियों और स्वतंत्रता सेनानियों के दर्शन कर स्मरण करते हैं। मंदिर की आठवीं मंजिल तक पहुंचने के लिए दो लिफ्ट लगी हैं। लिफ्ट में प्रति व्यक्ति मात्र दो रुपये शुल्क है। आठवीं मंजिल में शिव परिवार के दर्शनों के बाद श्रद्धालु सीढ़ियों से उतरते हुए हर मंजिल पर यादें समेटकर लाते हैं। मंदिर में सांई मंदिर भी है।

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भारत माता मंदिर में देश ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। समन्वय सेवा ट्रस्ट के मैनेजर उदय नारायण पांडे बताते हैं कोरोनाकाल से पहले प्रतिदिन दस हजार लोग मंदिर में विजिट करते थे। अब संख्या कम हुई है। इसके अलावा पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, केन्या, अमेरिका से लोग मंदिर देखने आते हैं। जूना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि भारत माता मंदिर के मुखिया हैं। उन्हीं की देखरेख में मंदिर और ट्रस्ट के आश्रमों का संचालन होता है। स्वामी अवधेशानंद गिरि ही ब्रह्मलीन स्वामी सत्यमित्रानंद के उत्तराधिकारी हैं। 17 नवंबर 1979 को स्वामी सत्यमित्रानंद ने मंदिर की नींव रखी। मंदिर का उद्घाटन 15 मई 1983 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने किया। देश के अलावा लेस्टर, नैरोबी, मरेबासा, यूके, केन्या, विम्वेल्डन, पूर्वी अफ्रीका के अलावा दुनिया के कई अनुयायियों ने मंदिर निर्माण में सहयोग किया। स्वामी सत्यमित्रानंद 2019 में ब्रह्मलीन हो गए।

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एक पवित्र मंदिर के साथ-साथ देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों को भी समर्पित मंदिर माना जाता है। इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 180 फीट है और हर मंजिल पर जाने के लिए लिफ्ट है। इस मंदिर में मौजूद आठ मंजिल की कहानी कुछ इस तरह है। पहली मंजिल पर भारत माता की मूर्ति और एक बड़ा नक्शा स्थापित है। दूसरी मंजिल को शूर मंजिल कहा जाता है जहां झाँसी की रानी, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी आदि की मूर्तियां स्थापित है। तीसरी मंजिल को मातृ मंदिर कहा जाता है, जहां मीरा बाई, सावित्री और कुछ महान महिलाओं की मूर्तियां हैं। चौथी मंजिल को भी मातृ मंदिर कहा जाता है लेकिन, इस मंजिल पर कबीर दास, गौतम बुद्ध, तुलसीदास और श्री साईं बाबा जैसे महान पुरुषों की मूर्तियां हैं।

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पांचवी मंजिल पर कई भगवान और साथ में महान पुरुषों की पेंटिंग है। यहां कई अनोखी पेंटिंग भी मौजूद है। छठी मंजिल को शक्ति के रूप में जाना जाता है। यहां देवी सरस्वती, देवी दुर्गा, देवी पार्वती आदि की पूजा होती है। सातवीं मंजिल भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंजिल पर भगवान विष्णु के दस अवतारों की एक प्रतिमा भी स्थापित है। आठवीं और अंतिम मंजिल पर भगवान शिव का मंदिर है, जहां हिमालय पर्वत पर बैठी हुई प्रतिमा है।

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