उत्तराखंड ।
धार्मिक एवं नैसर्गिक पर्यटन के लिए मशहूर उत्तराखंड की अपनी एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है जो देशी—विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करती है। यही कारण है कि राज्य में पर्यटकों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। असंख्य अनुभवों और मोहक स्थलों वाले इस राज्य में कई नैसर्गिक, सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक महत्व के स्थल हैं जिसे देखने की जिज्ञासा पर्यटकों को रहती है। देश भर में पर्यटन को प्रोत्साहन देने के लिए पर्यटन मंत्रालय ने इस साल ‘ग्रामीण और समुदाय केंद्रित पर्यटन’ की थीम को चुना है। उत्तराखंड इस थीम पर पर्यटकों का स्वागत करने के लिए पहले से ही तैयारी कर चुका है और स्थानीय समुदायों के रहन सहन, संस्कृति और खान-पान के साथ सामंजस्य बिठाते हुए पर्यटकों को प्रदेश में आने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
राज्य की संस्कृति, लोकगीत और नृत्य यहां आने वाले पर्यटकों को जहां लुभाती हैं वहीं प्राकृतिक सुंदरता देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग उत्तराखंड आते हैं। प्रदेश की नदियां हों या फिर पर्वतीय आंचल सभी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। जौलजीबी मेला, उत्तरायणी मेला, सेल्कु मेला, नंदा राजजात आदि कई ऐसे मेले हैं जो स्थानीय संस्कृति का बोध कराते हैं। वहीं इको टूरिज्म और पारिस्थितिकीय पर्यटन जैसी गतिविधियों के लिए यह एक सर्वोत्तम स्थल है। पर्यटक यहां हिमालयी पक्षियों की चहचहाहट से लेकर घने जंगलों में ट्रैकिंग भी कर रहे हैं। स्थानीय स्तर पर भी पर्यटकों को गांव का भोजन परोसा जाता है। जिसमें गांव के खेतों से निकली राजमा, दाल, चावल, सब्जियों आदि का स्वाद पर्यटकों को खूब भाता है। इसके अलावा मंडवे की रोटी, चैसा, फांडू, छांछ, बद्री घी, जैसे पहाड़ी व्यंजनों का आनंद भी पर्यटक उठाते हैं।
पर्यटन मंत्रालय की थीम के मुताबिक प्रदेश सरकार ‘ग्रामीण और समुदाय केंद्रित पर्यटन’ विकसित करने की दिशा में पहले से ही काम कर रही है। प्रदेश की ‘दीनदयाल उपाध्याय होमस्टे योजना’ इसी थीम का एक हिस्सा है। इस योजना के जरिए जहां विदेशी और घरेलू पर्यटकों के लिये एक साफ और किफायती तथा ग्रामीण क्षेत्रों में स्तरीय आवासीय सुविधा मिल रही है। वहीं स्थानीय स्तर पर युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है। राज्य के गुमनाम पर्यटक स्थलों की खोज होने से पर्यटकों की पसंद भी नए गंतव्य को लेकर बढ़ती जा रही है। शहरी कोलाहल से दूर नए और शांतप्रिय स्थल को देखने के लिए पर्यटक आकर्षित हो रहे हैं। पहाड़ी शैली में निर्मित होम स्टे पर्यटकों को राज्य की समृद्ध ग्रामीण और पहाड़ी संस्कृति की झलक दिखा रहे हैं वहीं हरी—भरी वादियों के बीच स्थानीय स्तर के लोक नृत्य, संगीत के बीच समय बिताकर पर्यटक नए अनुभव का अहसास कर रहे हैं। यहाँ का प्रमुख नृत्य थडिया चोंफाल, पांडव नृत्य, छपेली नृत्य, छांछरी नृत्य प्रसिद्ध है जो कि स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटकों को आनंदित करते हैं।
आम तौर पर लोग सर्दियों में बर्फीले इलाकों में जाने से बचते हैं, लेकिन उत्तराखंड में बड़ी संख्या में पर्यटक सर्दियों का आनंद लेने के लिए आते हैं। सड़क और होम स्टे की सुविधाओं के कारण पर्यटक खुलकर बर्फबारी का लुत्फ उठाने के लिए आते हैं। विश्व प्रसिद्ध औली विंटर गेम की जहां अलग प्रसिद्धि है वहीं कई जगहों पर आयोजित किए जाने वाले विंटर कार्निवाल राज्य में शीतकालीन पर्यटन को तेजी से पंख लगा रही है। शीतकाल में हिमालय का सौंदर्य और भी बढ़ जाता है। जिसे देखने के लिए पर्यटक आकर्षित होते हैं।
मनीषियों एवं ऋषियों की तपस्थली, वेद पुराणों के रचना का केन्द्र, देवभूमि के नाम से ख्याति प्राप्त उत्तराखंड की अपनी अलग संस्कृति है। जिसकी समृद्धता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि धर्म और दर्शन के साथ ही यहां का साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़े हर पहलुओं ने भारतीय संस्कृति को परिष्कृत किया है। आज देवभूमि आने वाला हर पर्यटक अपने को धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से तो जोड़ता ही है साथ ही यहां की कला, संस्कृति और सभ्यता का बोध लेकर दूसरों को भी उत्तराखंड जाने के लिए प्रोत्साहित करता है। वन आच्छादित क्षेत्र होने के कारण उत्तराखंड की काष्ठ शिल्प कला भी काफी प्रसिद्ध रही है। यहां की लकड़ी पर की गई नक्काशी देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ की शिल्प कलाओं में रेशा एवं कालीन शिल्पकला, मृत्तिका शिल्पकला, धातु शिल्पकला, चर्म शिल्पकला तथा मूर्ति शिल्प कला का भी कोई तोड़ नहीं है।
प्रदेश में पर्यटकों की संख्या बढ़े इसके लिए राज्य सरकार लगातार प्रयासरत है। प्रदेश में पर्यटन कुछ चुनिंदा केंद्रों तक ही सीमित न रहे इसके लिए राज्य के सभी 13 जनपदों में नए पर्यटन गंतव्य चिन्हित एवं विकसित किये जा रहे है। ये सभी पर्यटन डेस्टिनेशन किसी न किसी थीम के आधार पर विकसित किये जा रहे हैं। जिससे न केवल उत्तराखंड की संस्कृति की पहचान बढ़ेगी बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के भी स्थलों का भी विकास होगा।