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उत्तराखंड

उत्तराखंड: चमोली जिले में स्थित प्रसिद्ध अनुसूया देवी मंदिर

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देहरादून।

अनुसूया देवी मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित प्रसिद्ध एवम् धार्मिक मंदिर है। यह मंदिर हिमालय की ऊँची दुर्गम पहाडियों पर स्थित है। अनुसूया देवी का मंदिर समुन्द्र तल से 2000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित धार्मिक एवम् प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर के दर्शन करने के लिए पैदल चढ़ाई चलनी पड़ती है। मंदिर का महान पुरातात्विक महत्व है। यह माना जाता है कि यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां भक्त श्रद्धा के निशान के रूप में नदी के चारों ओर घूमते हैं। मंदिर में प्रवेश से पहले भगवान गणेश जी की भव्य प्रतिमा के दर्शन प्राप्त होते हैं। भगवन गणेश की भव्य प्रतिमा के बारे में मान्यता है कि यह शिला प्राकृतिक रूप से निर्मित है। मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ है। मंदिर के गर्भ गृह में सती अनुसूया की भव्य मूर्ति स्थापित है एवम मूर्ति पर चाँदी का छत्र रखा हुआ है। श्री अनुसूया माता के मंदिर के निकट “महर्षि आत्री तपोस्थली” और “दत्तात्रेय” है।

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मंदिर के प्रांगण में भगवान शिव, माता पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा देखी जा सकती है। इसके साथ ही सती अनुसूया के पुत्र “दत्तात्रेय जी की त्रिमुखी” प्रतिमा भी विराजमान है। इस पवित्र मंदिर के दर्शन पाकर सभी लोग धन्य हो जाते हैं और इसकी पवित्रता सभी के मन में समा जाती हैं सभी स्त्रियां मां सती अनसूया से पवित्रता होने का आशीर्वाद पाने की कामना करती हैं। हर साल दिसम्बर के महीने में सती अनुसूया के पुत्र दत्तात्रेय की जयंती का आयोजन किया जाता है और इस महोत्सव के समय मेले का भी आयोजन किया जाता है, और इस को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते है और इसी पवित्र स्थान से पञ्च केदारो में से एक केदार “रुद्रनाथ” जाने का मार्ग भी बनता है। अनुसूया देवी का मंदिर एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है।

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मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यताये कुछ इस प्रकार कही जाती है कि इस क्षेत्र में बसे अनुसूया नामक गाँव का भव्य मंदिर सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। अनुसूया देवी मंदिर के बारे में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार कहा जाता है कि इस स्थान को “अत्री मुनि” ने अपनी तपस्या का स्थान बनाया था। इसी स्थान पर उनकी पत्नी अनुसूया ने एक कुतिया का निर्माण किया था और उसी कुतिया में रहने लगी थी। देवी अनसूया के बारे में कहा जाता है कि देवी अनुसूया पतिवर्ता थी, जिस कारण उनकी प्रसिद्धता तीनो लोको में फैल गयी थी। इस धर्म को देखकर देवी पारवती, लक्ष्मी जी और देवी सरस्वती जी के मन में क्रोध ईर्षा का भाव उत्पन्न हो गया था, जिस कारण सभी देवियों ने मिलकर देवी अनुसूया की सच्चाई और पवित्रता के धर्म की परीक्षा लेने की ठानी और अपने पति भगवान शिव , भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा जी को अनुसूया के पास परीक्षा लेने के लिए भेजना चाहा, लेकिन तीनो भगवानो ने अपनी देवियों को समझाने की पूरी कोशिश की, जब देविया नहीं मानी तो तीनो देवता विवश होकर आश्रम में चले जाते है, वहां जाकर तीनो देवता साधू का रूप धारण कर आश्रम के द्वार पर भोजन की मांग करने लगे, जैसे ही देवी अनुसूया साधुओ को भोजन देने लगती है, तो तीनो साधू देवी अनुसूया के सामने भोजन स्वीकार करने के लिए एक शर्त रखते है कि देवी अनुस्य को निवस्त्र होकर भोजन परोसना होगा, तभी साधू भोजन ग्रहण करेंगे। इस बात पर देवी अनुसूया चिंता में डूब जाती है और सोचती है कि वो ऐसा कैसे कर सकती है। अंत में देवी आंखे मूंद कर पति को याद करती है, जिससे कि उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है तथा साधुओं के वेश मे उपस्थित देवों को देवी अनुसूया पहचान लेती है।

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तब देवी अनुसूया कहती है कि जो साधू चाहते है वो अवश्य पूर्ण होगा, लेकिन इसके लिए साधुओ को शिशु रूप लेकर उनका पुत्र बनना होगा। इस बात को सुनकर तीनो देव शिशु रूप में बदल जाते है और फलस्वरुप माता अनुसूया निवस्त्र होकर तीनो देवो को भोजन करवाती है, इस तरह तीनो देव देवी अनुसूया के पुत्र बन कर रहने लगते है। अधिक समय बीत जाने के बाद भी जब तीनो देव देवलोक नहीं पहुँचते है, तो पारवती, लक्ष्मी, सरस्वती चिंतित और दुखी हो जाती है और देवी अनुसूया के समक्ष जाकर माफ़ी मांगते है और अपने पतियों को बाल रूप से मूल रूप में लाने की प्रार्थना करते है। माता अनुसूया देवियों की प्रार्थना सुनकर तीनो देवो को माफ़ी के फलस्वरूप तीनो देवो को उनका रूप प्रदान कर देती है और तभी से अनुसूया “माँ सती अनुसूया” के नाम से प्रसिद्ध हुई।

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