फ़िल्म : पायल की झंकार (1980)
कलाकार: अलंकार जोशी, कोमल महुवाकर, शैल चतुवेर्दी
निदेशक : सत्येन बोस
किसे पसन्द आएगी : एक्शन, मारधाड़, हॉरर से दूरी रखने वालों को और राजश्री प्रोडक्शन, भारतीय संस्कृति, शास्त्रीय गीत व नृत्य के प्रेमीयों को।
इस सरल, भावनात्मक कथानकों पर आधारित साफ-सुथरी फिल्म को 1980 में ऑस्कर के लिए भारतीय प्रविष्टि के रूप में भी चुना गया था।
पायल की झंकार एक बहुत प्यारी फिल्म है, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत व नृत्यों से सजी है। ये निस्वार्थ , निर्मल प्रेम के साथ-साथ, गुरु शिष्या के अनूठे रिश्ते की मर्मस्पर्शी कथा भी है जो राजश्री परंपरा के अनुरूप है।
बाल कलाकार कोमल महुवाकर और अलंकार जोशी को इस फ़िल्म में पहली बार नायक नायिका के रूप लिया गया। हालाँकि यह फिल्म न तो उनके बीच कोई रोमांस दिखाती है, न ही किशोरों का कोई विपरीत लिंग आकर्षण। यह एक क्लासिक फिल्म है जो उन सभी लोगों के दिलों को छूती है जो भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा में विश्वास करते हैं और जो भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य से प्यार करते हैं।
कथानक : एक अनाथ किशोरी श्यामा (कोमल) जिसकी एकमात्र प्रेरणा और प्रेरक उसका दोस्त गोपाल (अलंकार) है, जो हमेशा उसकी जन्मजात नृत्य प्रतिभा को निखारने और संगीत और नृत्य की दुनिया में बड़ा नाम बनाने के लिए उसका मनोबल बढ़ाता है। ऐसे में श्यामा एक सच्चे गुरु से औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए कष्ट -अपमान सहकर भी अपने नृत्य के प्रति जुनून को जिंदा रखती है। एक दिल को शुकुन देने वाली फ़िल्म feel good movie है ये।
कोमल महुवाकर सत्तर के दशक की मशहूर बाल कलाकार होने के साथ-साथ एक बेहतरीन क्लासिकल डांसर भी रही हैं। इसमें (उनके करियर की एकमात्र मुख्य भूमिका में) अपनी मासूम अदाओं और मनमोहक नृत्य से जान डाल दी है। वह काफी खूबसूरत भी दिखती हैं और अलंकार के साथ उनकी ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री असाधारण है। अलंकार अपने बाल कलाकार के रूप में इतने मासूम और प्यारे लगते थे कि उस समय हर मोहल्ले कालोनी में एक दो प्यारे बच्चे मास्टर अलंकार के अलंकार से पुचकारे जाते थे ।
गाने सुलक्षणा पंडित और येसुदास की मधुर आवाज में बहुत ही कर्णप्रिय लगते है। माया गोविंद के मर्मस्पर्शी गीत, राज कमल का मधुर संगीत और मनमोहक शास्त्रीय नृत्य जादुई अहसास पैदा कर देता है।इस फिल्म में एक से बढ़कर गाने है- जिन खोजा तिन पाइयां., देखो कान्हा नहीं मानत बतियाँ, झिरमिर झिरमिर सावन आयो, सुर बिन ताल नहीं। यह फ़िल्म मुश्किल से दो घंटे की है। यह पूरे समय दर्शकों को बांधे रखता है और फिल्म में एक भी उबाऊ क्षण नहीं है। शुरू से लेकर अंत तक फिल्म ऐसे दृश्यों से भरी पड़ी है जो दर्शकों के दिल को उदात्त भावनाओं से भर देते हैं।