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ज्ञानवापी तहखाने में हिंदुओं को मिला पूजा का अधिकार

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वाराणसी। ज्ञानवापी केस में बड़ा फैसला आया है। यह फैसला हिंदू पक्ष में सुनाया गया है। फैसले के मुताबिक, ज्ञानवापी तहखाने में हिंदुओं को पूजा का अधिकार मिला गया है। ज्ञानवापी स्थित व्यासजी के तहखाने में पूजा किए संबंधी आवेदन पर जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में दोनों पक्ष की तरफ से मंगलवार को बहस पूरी कर ली गई थी। अदालत ने इस प्रकरण में बुधवार को अपना आदेश सुनाया। तहखाने में पूजा करने की अनुमति मिल गई है। वादी के अधिवक्ताओं के मुताबिक व्यासजी के तहखाने को डीएम की सुपुर्दगी में दिया गया है। अधिवक्ताओं के अनुरोध पर कोर्ट ने नंदी के सामने की बैरिकेडिंग को खोलने की अनुमति दी है। ऐसे में अब तहखाने में 1993 के पहले के जैसे पूजा के लिए अदालत के आदेश से आने- जाने दिया जाएगा। मंगलवार को कोर्ट में अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की तरफ से अधिवक्ता मुमताज अहमद और एखलाक अहमद ने कहा था कि व्यासजी का तहखाना मस्जिद का हिस्सा है। वहां पूजा की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम से बाधित है। तहखाना वह वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। लिहाजा, वहां पूजा-पाठ कि अनुमति न दी जाए।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी कोर्ट में व्यवस्था खाने में पूजा का अधिकार हिंदू पक्ष को दे दिया है। हिंदू पक्ष की ओर से व्यासजी तहखाने में नियमित पूजा के अधिकार की मांग की गई थी। इस संबंध में कोर्ट ने सुनवाई पहले ही पूरी कर ली थी। बुधवार को वाराणसी जिला कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। इसमें कहा गया कि हिंदू पक्ष व्यास जी तहखाने में नियमित पूजा कर सकते हैं।

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हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि यह हमारी सबसे बड़ी जीत है। मुस्लिम पक्ष के दावे को कोर्ट ने नकार दिया है। कोर्ट ने वाराणसी के जिलाधिकारी को 7 दिनों के भीतर पूजा की व्यवस्था करने का आदेश दिया है। वर्ष 1992 तक व्यास जी तहखाने में पूजा नियमित तौर पर होती थी। 6 दिसंबर 1992 को हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद व्यास जी तहखाने में नियमित पूजा को बंद करने का आदेश दिया गया था। इसके बाद यहां पर सालाना माता श्रृंगार गौरी की पूजा हो रही थी।

कोर्ट में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील विष्णु शंकर जैन कहते हैं, “सात दिनों के भीतर पूजा शुरू हो जाएगी. सभी को पूजा करने का अधिकार होगा…’ विष्णु जैन ने कहा कि लीगल काम हमने पूरा किया है। अब 7 दिन के अंदर तहखाने में पूजा शुरू हो जाएगी. भक्तों पुजारी को सबको अंदर जाने की इजाजत होगी।  ये इस केस का एक ऐतिहासिक आर्डर है।

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वाराणसी परिसर स्थित व्यस्त जी तहखाने में दोबारा पूजा की अनुमति देने संबंधी अर्जी पर मंगलवार को जिला जज में सुनवाई पूरी हो गई थी। जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने अपना आदेश सुरक्षित कर लिया था। बुधवार को इस संबंध में कोर्ट ने अपना आदेश सुनाया। वादी शैलेश व्यास के अनुसार, उनके नाना सोमनाथ व्यास का परिवार 1993 तक तहखाने में नियमित पूजा- पाठ करता था। वर्ष 1993 से तहखाने में पूजा- पाठ बंद हो गई। वर्तमान में यह तहखाना अंजुमन इंतजार मसाजिद के पास है। तहखाना को डीएम की निगरानी में सौंपने के साथ वहां दोबारा पूजा शुरू करने की अनुमति मांगी गई थी। अदालत के 17 जनवरी के आदेश पर डीएम ने 24 जनवरी को तहखाना अपनी सुपुर्दगी में ले लिया था।

हिंदू पक्ष ने कोर्ट में अर्जी देकर सोमनाथ व्यास परिवार को तहखाने में पूजा पाठ करने की अनुमति मांगी थी। सोमनाथ व्यास का परिवार 1993 तक तहखाने में नियमित रूप से पूजा पाठ करता रहा था। लेकिन वर्ष 1993 के बाद तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के आदेश पर तहखाने को बंद कर बैरिकेडिंग कर दी गई थी। इसके साथ ही हिंदू समुदाय की ओर से ज्ञानवापी में पूजा बंद कर दी गई थी।

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लंबी अदालती लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एएसआई ने ज्ञानवापी परिसर का सर्वे किया था। इस दौरान तहखाने की साफ-सफाई करवाकर 17 जनवरी 2024 को जिला प्रशासन ने उसे कोर्ट के आदेश पर सील करके अपने कब्जे में ले लिया था। अब जिला अदालत ने जिला प्रशासन को आदेश दिया है कि वह 7 दिन के दिन के अंदर तमाम बाधाओं को दूर करके व्यास परिवार को नियमित पूजा करवाने का अधिकार बहाल करे।

कोर्ट में हिंदू पक्ष के दूसरे वकील मदन मोहन यादव ने बताया कि जिला न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने तहखाने में पूजा पाठ करने का अधिकार व्यास जी के नाती शैलेन्द्र पाठक को दे दिया है. उन्होंने बताया कि प्रशासन सात दिन के अंदर पूजा—पाठ कराने की व्यवस्था करेगा और पूजा कराने का कार्य काशी विश्वनाथ ट्रस्ट करेगा. यादव ने बताया कि ज्ञानवापी के सामने बैठे नंदी महाराज के सामने से रास्ता खोला जाएगा. वकील मदन मोहन यादव ने बताया कि अदालत ने ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यास जी के तहखाने में हिंदुओं को पूजा—पाठ करने की अनुमति दे दी है.

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मंगलवार को सुनवाई के दौरान वादी ने इस मामले में नियमित पूजा पाठ की मांग की। इस पर अंजुमन इंतेजामिया के वकील ने आपत्ति जताते हुए दलील खारिज करने की मांग की। 17 जनवरी के आदेश में कोर्ट ने केवल रिसीवर नियुक्त करने का जिक्र किया है। उसमें पूजा के अधिकार का कोई जिक्र नहीं किया गया है। इसलिए नियमित वाद को निस्तारित करते हुए खारिज करने की मांग की गई। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलित सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।

वाराणसी कोर्ट के फैसले के बाद नदी के सामने से व्यासजी तहखाने में जाने का रास्ता बनाया जाएगा। इस संबंध में कोर्ट के आदेश के बाद जिला प्रशासन के स्तर पर कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट ने सात दिनों के भीतर वाराणसी डीएम को पूजा के लिए व्यवस्था का निर्देश दिया है। हिंदू पक्ष के वकील ने साफ किया कि हिंदू पक्ष को अपने भगवान की पूजा का अधिकार मिला है। वहां भगवान शिव की पूजा अब संभव होगी।

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कोर्ट का फैसला आने के बाद मुस्लिम पक्ष ने इस पर नाराजगी जताई है। मुस्लिम पक्ष ने कहा है कि फैसले के बाद हाईकोर्ट में इस आदेश के खिलाफ अपील की जाएगी। मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले को नकार दिया है। इससे पहले मुस्लिम पक्ष ने एएसआई के सर्वे को भी नकार दिया था। ज्ञानवापी परिसर में स्थित माता श्रृंगार गौरी भी पूजा का अधिकार मांगा जा रहा है। वहीं, हिंदू पक्ष वाराणसी कोर्ट के फैसले को सबसे बड़ी जीत बता रहा है।

ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी मे स्थित एक विवादित मस्जिद है। यह मस्जिद, काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है। 1669 मे मुग़ल बादशाह औरंगजेब आलमगीर ने बनवाई थी ज्ञानवापी एक संस्कृत शब्द है इसका अर्थ है ज्ञान का कुआं। 1991 से इस मस्जिद को हटाकर मंदिर बनाने की कानूनी लड़ाई चल रही है। पर 2022 मे सर्वे होने बाद ये ज्यादा चर्चों मे है।

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काशी विश्वनाथ मंदिर और उससे सटी ज्ञानवापी मस्जिद को किसने बनवाया, इसको लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। लेकिन ठोस ऐतिहासिक जानकारी दुर्लभ है। आमतौर पर यह माना जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया था और वहां एक मस्जिद का निर्माण किया गया था। चौथी और पांचवीं शताब्दी के बीच, चंद्रगुप्त द्वितीय, जिसे विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है, ने गुप्त साम्राज्य के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करने का दावा किया है। 635 ई०, प्रसिद्ध चीनी यात्री हुआन त्सांग ने अपने लेखन में मंदिर और वाराणसी का वर्णन किया। ईसा पश्चात 1194 से 1197 तक, मोहम्मद गोरी के आदेश से मंदिर को काफी हद तक नष्ट कर दिया गया था, और पूरे इतिहास में मंदिरों के विध्वंस और पुनर्निर्माण की एक श्रृंखला शुरू हुई। कई हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया और उनका पुनर्निर्माण किया गया। ईस्वी 1669 में, मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश से, मंदिर को अंततः ध्वस्त कर दिया गया और उसके स्थान पर एक ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया। 1776 और 1978 के बीच, इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने ज्ञानवापी मस्जिद के पास वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया। 1936 में पूरे ज्ञानवापी क्षेत्र में नमाज अदा करने के अधिकार के लिए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जिला न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया था। वादी ने सात गवाह पेश किए, जबकि ब्रिटिश सरकार ने पंद्रह गवाह पेश किए। ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज अदा करने का अधिकार स्पष्ट रूप से 15 अगस्त, 1937 को दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि ज्ञानवापी संकुल में ऐसी नमाज कहीं और नहीं पढ़ी जा सकती। 10 अप्रैल 1942 को उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और अन्य पक्षों की अपील को खारिज कर दिया। पंडित सोमनाथ व्यास, डॉ. रामरंग शर्मा और अन्य ने ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और पूजा की स्वतंत्रता के लिए 15 अक्टूबर, 1991 को वाराणसी की अदालत में मुकदमा दायर किया। अंजुमन इंतजमिया मस्जिद और उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनऊ ने 1998 में हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर कर इस आदेश को चुनौती दी थी। 7 मार्च 2000 को पंडित सोमनाथ व्यास का निधन हो गया। पूर्व जिला लोक अभियोजक विजय शंकर रस्तोगी को 11 अक्टूबर, 2018 को मामले में वादी नियुक्त किया गया था। 17 अगस्त 2021 मे शहर की 5 महिलाओं राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, मंजू व्यास, सीता साहू और रेखा पाठक ने वाराणसी सत्र न्यायलय में याचिका दायर की थी और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी का उन्हें नियमित दर्शन पूजन की अनुमति मांगी जिसके बाद मस्जिद मे सर्वे कराया गया।

1669 मे औरंगजेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़ कर इस मस्जिद का निर्माण करवाया। मंदिर परिसर के ही शृंगार गौरी, श्री गणेश और हनुमानजी के स्थानों को भी ध्वस्त कर दिया था। मान्यता है की पश्चिमी दीवार जो की पूरी तरह किसी मंदिर के मुख्य द्वार जैसा प्रतीत होता है वो शृंगार गौरी मंदिर का प्रवेश द्वार होगा जिससे बांस-मिट्ठी से बंद करदिया गया है और मस्जिद के अंदर गर्भगृह होगा। इसी पश्चिमी दीवार के सामने एक चबूतरा है जहां शृंगार गौरी की एक मूर्ति है जो सिंदूर से रंगी है, यह साल मे एक बार चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन हिन्दू पक्ष के द्वारा यह पूजा होती है परंतु 1991 के पहले यह नियमित पूजा होती थी जिसपर तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने रोक लगा दी थी। 2021 मे पांचों महिलों का इसी मंदिर मे नियमित पूजा करने के लिए याचिका दायर की थी जिसके सर्वे का आदेश कोर्ट द्वारा किया गया था।

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ज्ञानवापी परिसर मामले के याचिकाकर्ता हरिहर पांडेय का बीएचयू में निधन हों गया. तीन याचिकाकर्ताओ में से पहले ही दो याचिकाकर्ता सोमनाथ व्यास और रामनारायण शर्मा की मौत हो चुकी है। 1991 ज्ञानवापी मामले में याचिकाकर्ता के साथ-साथ बनारस के कई मंदिरों और आयोजन को लेकर भी उन्होंने आवाज बुलंद की थी। 33 वर्षो से वह कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे।

17 अगस्त 2021 मे शहर की 5 महिलाओं राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, मंजू व्यास, सीता साहू और रेखा पाठक ने वाराणसी सत्र न्यायलय में याचिका दायर की थी और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी का उन्हें नियमित दर्शन पूजन की अनुमति मांगी थी जिसकी सुनवाई करते करते अप्रैल 2022 आ गया। 8 अप्रैल 2022 को सत्र न्यायलय ने सिविल जज सीनियर डिविजन ने वकील अजय कुमार मिश्र को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया और मस्जिद मे सर्वे करवाने की अनुमति दी जिसकी रिपोर्ट 17 मई तक दाखिल करने को कहा। जिसपर मुस्लिम पक्ष ने आपत्ति जताई और हाई कोर्ट पहुंचे परंतु न्यायालय ने सर्वे पर रोक से इनकार कर दिया। 6 और 7 मई को लगभग ढाई घंटे कोर्ट कमिश्नर के नेतृत्व मे सर्वे हुआ पर 7 मई को सर्वे टीम को मुस्लिम पक्ष का विरोध देखना पड़ा जिसके कारण उसस दिन सर्वे नहीं हुआ और मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट मे कोर्ट कमिश्नर को हटाने की मांग की पर कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर किया अपितु विशाल सिंह को विशेष कमिश्नर बनाया गया, जो पूरी टीम का नेतृत्व करेंगे। उनके साथ अजय प्रताप सिंह को भी शामिल किया गया और कोर्ट ने आदेश दिया था कि मस्जिद समेत पूरे परिसर का सर्वे होगा। 14 मई को कोर्ट कमिश्नर अजय कुमार मिश्र की अगुवाई में पहले दिन सर्वे हुआ। पहले दिन सुबह 8 बजे से 12 बजे तक सर्वे हुआ। राउंड1 में सभी 4 तहखानों के ताले खुलवा कर सर्वे किया गया। अगले दिन 15 मई को दूसरे राउंड का सर्वे हुआ। दूसरे दिन भी चार घंटे सर्वे का काम चला, लेकिन कागजी कार्रवाई के कारण सर्वे टीम डेढ़ घंटे देर से बाहर निकली। राउंड 2 में गुंबदों, नमाज स्थल, वजू स्थल के साथसाथ पश्चिमी दीवारों की वीडियोग्राफी हुई। मुस्लिम पक्ष ने चौथा ताला खोला। साढ़े तीन फीट के दरवाजे से होकर गुंबद तक का सर्वे हुआ। 16 मई को आखिरी दौर का सर्वे हुआ जहां 2 घंटे में सर्वे का काम पूरा कर लिया गया। इस दौरान हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी में शिवलिंग मिलने का दावा किया। इस दावे के बाद कोर्ट ने शिवलिंग वाली जगह को को सील करने का आदेश दिया। कोर्ट के आदेश पर डीएम ने वजु पर पाबंदी लगा दी और अब ज्ञानवापी में सिर्फ 20 लोग ही नमाज पढ़ पाएंगे। टीम ने रिपोर्ट दाखिल करने के लिए और समय मांग जिससे कोर्ट की कारवाई अगले दिन 18 मई तक टल गई। इसी बीच कोर्ट ने अजय मिश्र को कोर्ट कमिश्नर के पद से हटा दिया जिसके कारण 18 मई को न्यायलय मे हड़ताल हुई और उस दिन सुनवाई नहीं हो पाई। 19 मई को अजय मिश्र ने 6 और 7 मई को हुए सर्वे और विशाल सिंह (विशेष कोर्ट कमिश्नर) ने 14 से 16 मई के सर्वे का रिपोर्ट कोर्ट मे दाखिल कर दिया।

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प्रथम सर्वे रिपोर्ट :- यह रिपोर्ट 6 और 7 मई का है। ये लगभग 2-3 पन्नों की रिपोर्ट है। इसके मुताबिक, 6 मई को किए गए सर्वे के दौरान बैरिकेडिंग के बाहर उत्तर से पश्चिम दीवार के कोने पर पुराने मंदिरों का मलबा मिला, जिस पर देवीदेवताओं की कलाकृति बनी हुई थी और अन्य शिलापट पट्ट थे, जिन पर कमल की कलाकृति देखी गईं। पत्थरों के भीतर की तरफ कुछ कलाकृतियां आकार में स्पष्ट रूप से कमल और अन्य आकृतियां थीं, उत्तर पश्चिम के कोने पर गिट्टी सीमेन्ट से चबूतरे पर नए निर्माण को देखा जा सकता है। उक्त सभी शिक्षा पट्ट और आकृतियों की वीडियोग्राफी कराई गई। उत्तर से पश्चिम की तरफ चलते हुए मध्य शिला पट्ट पर शेषनाग की कलाकृति, नागफन जैसी आकृति देखी गईं। शिलापट्ट पर सिन्दूरी रंग की उभरी हुई कलाकृति भी थीं। शिलापट्ट पर देव विग्रह, जिसमें चार मूर्तियों की आकृति बनी है, जिस पर सिन्दूरी रंग लगा हुआ है, चौथी आकृति जो मूर्ति की तरह प्रतीत हो रही है, उस पर सिन्दूर का मौटा लेप लगा हुआ है। शिलापट्ट भूमि पर काफी लंबे समय से पड़े प्रतीत हो रहे हैं। ये प्रथम दृष्टया किसी बड़े भवन के खंडित अंश नजर आते हैं। बैरिकेडिंग के अंदर मस्जिद की पश्चिम दीवार के बीच मलबे का ढेर पड़ा है। ये शिलापट्ट पत्थर भी उन्हीं का हिस्सा नजर आ रहे हैं। इन पर उभरी कुछ कलाकृतियां मस्जिद की पीछे की पश्चिम दीवार पर उभरी कलाकृतियों जैसी दिख रही है। परंतु मुस्लिम पक्ष के विरोध के कारण यह सर्वे रुक गया।

द्वितीय सर्वे रिपोर्ट :- यह रिपोर्ट 14 से 16 मई के बीच का है जो मुस्लिम पक्ष के विरोध के बाद हुआ था। ये लगभग 12-14 पन्नों की रिपोर्ट है। अजय कुमार मिश्र की तरह विशाल सिंह की रिपोर्ट में भी मस्जिद परिसर में हिंदु आस्था से जुड़े कई निशान मिलने की बात कही गई है। रिपोर्ट में शिवलिंग बताए जा रहे पत्थर को लेकर भी डिटेल में जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वजूखाने में पानी कम करने पर 2.5 फीट का एक गोलाकार आकृति दिखाई दी, जो शिवलिंग जैसा है। गोलाकार आकृति ऊपर से कटा हुआ डिजाइन का अलग सफेद पत्थर है। जिसके बीच आधे इंच से का छेद है, जिसमें सींक डालने पर 63 सेंटीमीटर गहरा पाया गया। इसे वादी पक्ष ने शिवलिंग बताया तो प्रतिवादी पक्ष ने कहा कि यह फव्वारा है परंतु जब हिंदू पक्षकारों ने सर्वे के दौरान कथित फव्वारे को चालकर दिखाने को कहा तब मस्जिद कमेटी के मुंशी ने फव्वारा चलाने में असमर्थता जताई। फव्वारे पर मस्जिद कमेटी ने गोल-मोल जवाब दिया। पहले 20 साल और फिर 12 साल से इसके बंद होने की बात कही गई। कथित फव्वारे में पाइप जाने की कोई जगह नहीं मिली है। रिपोर्ट में तहखाने के अंदर मिले साक्ष्यों का जिक्र करते हुए कहा है कि दरवाजे से सटे लगभग 2 फीट बाद दीवार पर जमीन से लगभग 3 फीट ऊपर पान के पत्ते के आकार की फूल की आकृति बनी थी, जिसकी संख्या 6 थी। तहखाने में 4 दरवाजे थे, उसके स्थान पर नई ईंट लगाकर उक्त दरावों को बंद कर दिया गया था। तहखाने में 4-4 पुराने खम्भे पुराने तरीके के थे, जिसकी ऊंचाई 8-8 फीट थी। नीचे से ऊपर तक घंटी, कलश, फूल के आकृति पिलर के चारों तरफ बने थे। बीच में 02-02 नए पिलर नए ईंट से बनाए गए थे, जिसकी वीडियोग्राफी कराई गई है। एक खम्भे पर पुरातन हिंदी भाषा में सात लाइनें खुदी हुईं, जो पढ़ने योग्य नहीं थी। लगभग 2 फीट की दफती का भगवान का फोटो दरवाजे के बाएं तरफ दीवार के पास जमीन पर पड़ा हुआ था जो मिट्टी से सना हुआ था।  रिपोर्ट में कहा गया है कि एक अन्य तहखाने में पश्चिमी दीवार पर हाथी के सूंड की टूटी हुई कलाकृतियां और दीवार के पत्थरों पर स्वास्तिक और त्रिशूल और पान के चिन्ह और उसकी कलाकृतियां बहुत अधिक भाग में खुदी हैं। इसके साथ ही घंटियां जैसी कलाकृतियां भी खुदी हैं। ये सब कलाकृतियां प्राचीन भारतीय मंदिर शैली के रूप में प्रतीत होती है, जो काफी पुरानी है, जिसमें कुछ कलाकृतियां टूट गई हैं।

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जिस दिन सर्वे रिपोर्ट दाखिल की गई थी उसी दिन सुप्रीम कोर्ट मे भी सुनवाई हो रही थी और सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी सत्र न्यायालय के सुनवाई पर रोक लगा डी और सुनवाई 20 मई तक टल गई। 20 मई को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया की मामले की फिलहाल सुनाई वाराणसी सत्र न्यायलय ही करे और 17 मई का आदेश जो था की शिवलिंग की सुरक्षा की और नमाज़ मे कोई बाधा न आए वो 8 हफ्ते तक प्रभावी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट मे मामले की अगली सुनवाई गर्मी के छुट्टी के बाद जुलाई के दूसरे हफ्ते होगी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को वापस वाराणसी जिला अदालत को ट्रैन्स्फर कर दिया और जज ए. के. विश्वेश को मामले की सुनवाई की जिम्मेदारी दी। कुछ दिन सुनवाई चली और हिन्दू पक्ष ने सर्वे रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का अनुरोध किया पर मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध किया परंतु जज ने सार्वजनिक करने की अनुमति दे दी। वादी और हिन्दू पक्ष को रिपोर्ट फाइल मिली पर उनके देखने के पहले ही रिपोर्ट मीडिया मे लीक हो गई। विडिओ म साफ तौर पर हिन्दू मंदिर की कलाकृतिया और वाजुखाने की शिला बिल्कुल शिवलिंग जैसी प्रतीत हो रही थी। अगले दिन जब वादी पक्ष की महिलाये कोर्ट को वापस रिपोर्ट देने कोर्ट गई पर कोर्ट ने वापस लेने से मना कर दिया और विडिओ लीक होने के जांच के आदेश दिए। अगले दिन मुस्लिम पक्ष ने लगभग 51 पन्नों का अपना जवाब कोर्ट ने दाखिल किया जिसके कारण पूरा दिन बीत गया और गर्मी की छुट्टियों के कारण मामले की सुनवाई जुलाई तक टल गई और हिन्दू पक्ष अपना जवाब दाखिल नहीं कर पाया।

भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण ने २५ जनवरी २०२४ को वाराणसी के जिला जज को अपनी रपट सौंप दी। इस रिपोर्ट में वर्तमान ढांचे (मस्जिद) से पहले वहाँ हिंदू मंदिर होने का उल्‍लेख है। बताया गया है कि वह मन्दिर नागर शैली का मन्दिर था। रिपोर्ट में मंदिर के चार खंभों से ढांचे तक की परिकल्‍पना बताई गई है। एएसआई ने मंदिर का नक्‍शा नहीं बनाया है, किन्तु रिपोर्ट में मंदिर के प्रवेश, मंडप और गर्भगृह का जिक्र है। जीपीआर सर्वे में मस्जिद के मुख्‍य गुंबद के नीचे पन्‍नानुमा टूटी वस्‍तु मिली है। यह वह हिस्‍सा है जहां पूर्वी दीवार को बंद किया गया है। इसके आगे का हिस्‍सा प्राचीन मंदिर का गर्भगृह होने की संभावना जताई जा रही है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पुरातत्त्वविद प्रो० अशोक सिंह का कहना है कि ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) की रिपोर्ट ज्ञानवापी में तहखाने के करीब छह फीट नीचे मंदिर के मिले अवशेषों के 2000 साल पुराना होने का संकेत देती है। सर्वे में पत्‍थर से निर्मित जो विग्रह मिले हैं, उनमें सबसे ज्‍यादा 15 शिवलिंग हैं। इसके अलावा 18 मानव की मूर्तियां, तीन जानवरों की मूर्ति और विभिन्‍न काल के 93 सिक्‍के मिले हैं। 113 धातु की सामग्रियां भी मिलीं हैं।

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ज्ञानवापी परिसर में एएसआई सर्वे में आठ तरह की आधुनिक तकनीकों का सहारा लिया गया। इसमें डिफरेंशियल ग्‍लोबल पोजिशनिंग सिस्‍टम (डीजीपीएस), ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर), हैंडहेल्‍ड एक्‍सआरएफ, थर्मो हाइग्रोमीटर, जीपीएस मैप, टोटल स्‍टेशन सर्वेक्षण, एएमएस या एक्‍सेलेटर मास, स्‍पेक्‍ट्रोमेट्री, ल्‍यूनिनसेंस डेटिंग विधि के साथ ही नौ तरह के डिजिटल कैमरे का इस्‍तेमाल किया गया। एएसआई के सर्वे विशेषज्ञों में प्रो. आलोक त्रिपाठी के साथ डॉ. अजहर आलम हाशमी और डॉ. आफताब हुसैन ने महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। सर्वे टीम में देशभर से बुलाए गए करीब 175 विशेषज्ञ शामिल रहे।

ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वे के बाद एएसआई ने जिला जज की अदालत में जो रिपोर्ट सौंपी है, उसे चार अध्‍याय में बांटा गया है। पहले अध्‍याय में 155 पेज में ज्ञानवापी की संरचना, वर्तमान ढांचा, खंभा-प्‍लास्‍टर, पश्चिमी दीवार, शिलालेख व भग्‍नावशेष का पूरा विवरण है। इसी अध्‍याय के अंत में आठ पेज में सर्वे के निष्‍कर्ष के रूप में बताया गया है कि मौके पर मिले साक्ष्‍यों, शिलालेख और वर्तमान ढांचा की व्‍यवस्‍था को देखकर पूरी तरह से स्‍पष्‍ट है कि प्राचीन हिंदू मंदिर के ऊपर मस्जिद का ढांचा तैयार किया गया है। 206 पेज के दूसरे अध्‍याय में वैज्ञानिक अध्‍ययन का जिक्र है तो 229 पेज के तीसरे अध्‍याय में सर्वे में साक्ष्‍य के रूप में एकत्र की गई एक-एक वस्‍तु, दीवारों-खंभों पर अंकित चिह्न और इनके माप का ब्‍यौरा, सर्वे में ली गई तस्वीरों का भी विवरण है। 243 पेज के चौथे अध्‍याय में ज्ञानवापी परिसर में ली गई तस्‍वीरों को चस्‍पा किया गया है।

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