Pahaad Connection
Breaking News
Breaking Newsउत्तराखंडबॉलीवुड

उत्तराखंड की गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी भाषा की फिल्मों को दी जा रही 2 करोड़ रुपए की धनराशि

Advertisement

देहरादून। आर्थिक आमदनी के बिना उत्तराखण्डी सिनेमा उद्योग का विकास संभव नहीं है। प्रादेशिक फिल्मों में जब तक रीजनल कंटेंट, एडवांस टैक्नोलॉजी एवं प्रोफेशनल्जिम नहीं आएगा तब तक उन फिल्मों को देखने दर्शक हॉल में नहीं उमड़ेंगे। उक्त विचार आज यहॉ ‘उत्तराखण्डी सिनेमा दिशा, दशा एवं भविष्य तथा समस्या और समाधान’ विषय पर आयोजित सेमिनार में सामुहिक रूप से उभर कर आए। यह कार्यक्रम आज यहॉ दून पुस्तकालय प्रेक्षागृह में ‘’द्वारा आयोजित किया गया था। सेमिनार में जुटे प्रदेश के वरिष्ठ फिल्म निर्माता, निर्देशक, तकनीशियन, वरिष्ठ कलाकारों एवं समीक्षकों द्वारा बहुत तथ्यात्मक ढ़ंग से 42 साल के उत्तराखण्डी सिनेमा के अविकसित व्यवसायिक पक्ष पर विस्तार पूर्वक अपने तर्क रखे गए। इस अवसर पर सेमिनार के मुख्य अतिथि उत्तराखण्ड फिल्म विकास परिषद के नोडल अधिकारी एवं संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. नितिन उपाध्याय ने कहा कि फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा फिल्म नीति 2024 लागू की गई है, जिसकी देशभर के फिल्म निर्माता एवं निर्देशक सराहना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अनेक फिल्म निर्माता अपनी फिल्मों की शूटिंग उत्तराखण्ड में कर रहे है, जबकि उत्तराखण्ड की भाषा बोली के फिल्म निर्माण में बहुत तेजी आयी है। उत्तराखंड की गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी भाषा की फिल्मों को 50 प्रतिशत अनुदान, जो अधिकतम 2 करोड़ रुपए की धनराशि दी जा रही है। इससे बड़ी संख्या में स्थानीय फ़िल्म निर्माता फिल्में बना रहे है। उन्होंने कहा कि फ़िल्म विकास परिषद द्वारा फ़िल्म रिसोर्स डायरेक्टरी तैयार की जा रही है। उन्होंने कहा कि नई फिल्म नीति को उद्योग के नजरिये से लागू किया गया है, ताकि राज्य में फ़िल्म उद्योग का वातावरण बन सके। इससे पूर्व प्रदेश में अच्छी फिल्मनीति लागू करने पर सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर मुख्य अतिथि श्री उपाध्याय का शाल ओढ़कर व स्मृति चिन्ह भेंटकर  सम्मानित किया गया। इस मौके पर कार्यक्रम के संयोजक प्रदीप भण्डारी द्वारा फिल्म इंडस्ट्री की ओर से श्री उपाध्याय को तीन सूत्रीय मांग पत्र भी सौंपा गया। जिसमें फिल्म अवार्ड शीघ्र प्रदान करने, फिल्म सिटी योजना को क्रियावन्वित करने तथा फिल्म कलाकार कल्याण कोष भी फिल्म नीति में जोड़ने की मांग की गई। सेमिनार में सभी वक्ताओं की एक राय साफ उभर कर आयी कि फिल्म निर्माताओं के योगदान एवं सरकार के सकारात्मक रूख से आज प्रदेश में आंचलिक फिल्म निर्माण का बेहतरीन वातावरण तैयार हुआ है। पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड की संस्कृति और भाषा बोली को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने की दिशा में यह एक सुखद पहलू है। मगर बड़ी संख्या में आंचलिक फिल्मों के बनने के बावजूद उत्तराखण्डी सिनेमा की सेहत अन्य राज्यों के सिनेमा उद्योग की तुलना में व्यावसायिक रूप से दशा अच्छी नहीं है । क्योंकि शूरू की 2-4 फिल्मों को छोड़कर बाद का प्रादेशिक सिनेमा बाक्स ऑफिस पर कभी कमाल नहीं दिखा पाया। टिकट खिड़की पर लोगों की कतारें न दिखायी दी जिसका यही कारण रहा कि फिल्में दर्शकों को रिझा नहीं पायी। दर्शक धीरे धीरे सिनेमा से दूर होते चले गए । दर्शकों का फिल्मों से मोह भंग का कारण फिल्मों में मूल विषय सामग्री, उन्नत तकनीकि, उत्कृष्ट निर्देशन, प्रतिभाशाली कलाकार और व्यवसायिकता का बड़ा अभाव होना प्रमुख कारण रहा है । 90 के दशक में जहॉ फिल्मों के छः सौ से अधिक दर्शक क्षमता वाले सिनेमा हॉल में 4 शो हाउसफुल चलते थे, वहीं आज 100 से 200 तक के दर्शक क्षमता वाले मल्टीप्लेक्स हाल में मात्र एक शो चलता है और उस शो को भरने के लिए भी निर्माता निर्देशको को भारी पापड़ बेलने पड़ते हैं। सेमिनार में फिल्म निर्देशक प्रदीप भण्डारी, सुदर्शन शाह, गोपाल थापा, विजय भारती, ऋषि परमार, वैभव गोयल, कान्ता प्रसाद, बेचेन कण्डियाल, जय कृष्ण नौटियाल, देबू रावत, गोविंद नेगी, विनय चानना, डाव वीरेंद्र बर्तवाल, दीपक नौटियाल, गंभीर जयाडा, बद्रीश छाबड़ा,  रवि मंमगाई, मोहित घिल्डियाल, मेघा खुगसाल, सुरेश भट्ट, अनामिका राज, मनशा कुकरेती, मुकेश शर्मा, आशीष पंत समेत बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।

 

Advertisement

 

 

Advertisement

 

 

Advertisement
Advertisement

Related posts

मोहल्ला समिति में हुए फर्जीवाड़े के दोषियों पर हो कानूनी कार्यवाही

pahaadconnection

समर कैंप के समापन पर पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित

pahaadconnection

घर पर भी कर सकते हैं रामलला की पूजा-आराधना : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज

pahaadconnection

Leave a Comment