Pahaad Connection
Breaking News
Breaking Newsउत्तराखंड

यूनिफॉर्म सिविल कोड ना तो सही मायने में यूनिफार्म है और ना ही सिविल : गरिमा मेहरा दसौनी

Advertisement

देहरादून। उत्तराखंड का बहुचर्चित बहुप्रतीक्षित समान नागरिक संहिता आज से प्रदेश में लागू होने जा रही है, उस पर उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसोनी ने प्रतिक्रिया दी हैं। दसौनी ने कहा कि उत्तराखंड की समान नागरिक संहिता को लेकर जो उत्साह सरकार और सत्तारूढ़ दल में देखने को मिल रही है वह उत्साह आम जन में कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा है। गरिमा ने कहा समान नागरिक संहिता कभी भी उत्तराखंड की सार्वजनिक मांग नहीं रही है और इसको राज्य में लागू करना सामाजिक आवश्यकता कम एक राजनीतिक पैंतरेबाजी अधिक प्रतीत होता है। दसौनी ने कहा कि संहिता में हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के प्रावधानों को शामिल किया गया है लेकिन यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि इसे ईसाई, मुस्लिम, पारसी और सिख जैसे अल्पसंख्यक समुदायों की नागरिक संहिताओं को खत्म करने के लिए ही बनाया गया हो। गरिमा ने कहा कि इस बिल को बनाते समय समिति द्वारा सिलेक्टिव दृष्टिकोण अपनाया गया है, हिंदू बहुसंख्यकों ने भी कुछ प्रावधानों को लेकर गंभीर आपत्ति जताई है। एक विवादास्पद प्रावधान यह निर्धारित करता है कि उत्तराखंड में सिर्फ 1 वर्ष तक रहने वाले व्यक्तियों को राज्य का निवासी मान लिया जाएगा ,यह खंड सीधे तौर पर उत्तराखंड की मूल निवास की मांगों का खंडन करता है जो लंबे समय से मूल निवास को परिभाषित करने के लिए एक कट ऑफ वर्ष को मान्यता देने की मांग करते आ रहे हैं। गरिमा ने कहा कि यह प्रावधान बाहरी लोगों के लिए राज्य के संसाधनों के दोहन का रास्ता साफ करता है जिससे मूल आबादी के अधिकार और पहचान कमजोर पड़ते हैं। गरिमा ने कहा यह कोड ना तो समाज के किसी वर्ग की सेवा करता है और ना ही संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप है। यह सीधे तौर पर मौलिक अधिकारों पर चोट करता है। इसके अलावा उत्तराखंड में आदिवासी समुदायों को यूसीसी से बाहर रखना इसकी एकरूपता के दावे को कमजोर करता है।दसौनी ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 44 एक ऐसे यूसीसी की कल्पना करता है जो पूरे देश में लागू हो ना की व्यक्तिगत राज्यों तक सीमित हो। सीधे शब्दों में कहें तो यह कोड अपने घोषित उद्देश्य को पूरा करने में पूरी तरह विफल साबित हुआ है। दसौनी ने कहा कि सहमति से लिव इन रिलेशनशिप को भी कोड के तहत प्रभावी रूप से दंडित किया जाता है वह न केवल व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि निजता का भी हनन है। यूसीसी लिविंग इन रिलेशनशिप के नियम अच्छा बदलाव करने के बजाय नुकसान अधिक करता है और इस पूरे मसले को और अधिक जटिल और समस्या ग्रस्त बनाता है। इसके प्रावधान व्यक्तिगत मामलों में मोरल पुलिसिंग और सामाजिक हस्तक्षेप को और बढ़ावा देंगे। भाग 3 में लिव इन रिलेशनशिप में आपराधिक प्रावधान पेश किए गए हैं जो 2005 के घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के बिल्कुल विपरीत है । इस प्रकार यूसीसी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जिसमें निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार शामिल है। यह अनुच्छेद 14 की तरह सामान्ता के अधिकार और अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धर्म की स्वतंत्रता सहित संवैधानिक सुरक्षा का उल्लंघन करता है, क्योंकि लिविंग इन रिलेशनशिप को पंजीकृत कराना अनिवार्य रूप से व्यक्ति को अपनी निजी जीवन को सार्वजनिक करने के लिए मजबूर करता है, इससे सांप्रदायिक प्रतिक्रिया हो सकती है। उत्तराखंड सरकार के सेवानिवृत कानून अधिकारी और संवैधानिक विशेषज्ञ डॉक्टर ए एन पंत के अनुसार भले ही यूसीसी को अनुच्छेद 254(२) के तहत राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई हो लेकिन इसकी संवैधानिकता अत्यधिक संदिग्ध है। निजी संबंधों के सार्वजनिक पंजीकरण को अनिवार्य करके और सामाजिक और सांप्रदायिक हस्तक्षेप के लिए उपजाऊ जमीन तैयार करता है। यह उत्तराखंड जैसे विविधतापूर्ण राज्य में विशेष रूप से खतरनाक है जहां अंतर समुदाय संबंध लैंड जेहाद, थूक जिहाद इत्यादि प्रकरणों की वजह से पहले से ही चुनौतियों से भरे हुए हैं। इन वास्तविकताओं को संबोधित करने में यूसीसी की विफलता, इसके वास्तुकारों की ओर से दूरदर्शिता और संवेदनशीलता की कमी को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। इसके प्रावधान विरोधाभासों, भेदभावपूर्ण प्रथाओं और संवैधानिक उल्लंघनों से भरे हुए हैं। दसौनी ने कहा कि सद्भाव और समानता को बढ़ावा देने के बजाय यह संहिता सामाजिक विभाजन को गहरा करने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खत्म करने का जोखिम उठाती है। गरिमा ने समिति और सरकार पर प्रश्निः लगाते हुए कहा कि क्या यूसीसी न्यायिक जांच का सामना कर पाएगी या अपनी अंतर निहित खामियों के बोझ तले ही दब जाएगी?क्योंकि अपने मौजूदा स्वरूप में यह ना तो एकरूपता की ओर एक कदम है ना ही समानता की ओर और ना ही नागरिक सिद्धांतों का प्रतिबिंब है बल्कि एक प्रतिगामी उपाय है जो अनेक विभिन्नताओं वाले देश में भला करने से अधिक नुकसान करता है।

Advertisement
Advertisement

Related posts

कैबिनेट मंत्री ने किया निर्माणाधीन वैली ब्रिज का निरीक्षण

pahaadconnection

संकल्प दिवस के रूप मे मनायी पुण्य तिथि

pahaadconnection

राज्यपाल ने 5387 विद्यार्थियों को प्रदान की स्नातक और परास्नातक डिग्रियां

pahaadconnection

Leave a Comment