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हिमालय की गोद में बसा है मां ‘पूर्णागिरि मंदिर’

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देहरादून 23 मई। पूर्णागिरी मंदिर, समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर, उत्तराखंड के टनकपुर से लगभग 17 किमी दूर है। मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है और यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर सती माता की नाभि गिरी थी . पूर्णागिरी मंदिर, समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर, उत्तराखंड के टनकपुर से लगभग 17 किमी दूर है। मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है और यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर सती माता की नाभि गिरी थी। पूर्णागिरी को पुण्यगिरि के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर शारदा नदी के पास स्थित है। पूर्णागिरी मंदिर अपने चमत्कारों के लिए भी खासा जाना जाता है।
1632 में गुजरात के एक व्यापारी चंद्र तिवारी ने चंपावत के राजा ज्ञानचंद के साथ शरण ली थी। उनके सपनों में मां पुण्यगिरि दिखाई दी थी, जिसमें उन्होंने एक मंदिर का निर्माण करने के लिए कहा था। तब से आज तक मंदिर में जोरों शोरों के साथ पूजा पाठ की जाती है और भक्तों की भी काफी संख्या में देखने को मिलती है। चैत्र नवरात्रि यहां मनाया जाने वाला सबसे बड़ा त्योहार है। यहां एक मेला भी आयोजित किया जाता है, जहां भारत के अनगिनत भक्त मेले में शामिल होते हैं। इस मंदिर को एक और नाम से जाना जाता है, जिसके बारे में आपको शायद ही पता होगा। मंदिर को झूठे का मंदिर भी कहते हैं। चलिए आपको इस मंदिर दिलचस्प बातें बताते हैं।पूर्णागिरी मंदिर, समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर, उत्तराखंड के टनकपुर से लगभग 17 किमी दूर है। मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है और यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर सती माता की नाभि गिरी थी। पूर्णागिरी को पुण्यगिरि के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर शारदा नदी के पास स्थित है। पूर्णागिरी मंदिर अपने चमत्कारों के लिए भी खासा जाना जाता है। पूर्णागिरी मंदिर से लौटते समय झूठे का मंदिर की भी पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि एक व्यापारी ने मां पूर्णागिरी से वादा किया था कि अगर उसकी पुत्र की इच्छा पूरी हुई तो वह एक सोने की वेदी का निर्माण करेगा। उनकी इच्छा देवी ने प्रदान की थी। लालच आते ही व्यापारी पगला गया और उसने सोने की परत चढाने के साथ तांबे की एक वेदी बना डाली। ऐसा भी कहा जाता है कि जब मजदूर मंदिर को ले जा रहे थे तो उन्होंने कुछ देर आराम करने के लिए मंदिर को जमीन पद रख दिया। उन्होंने कितना मंदिर को उठाने की कोशिश की, लेकिन मंदिर उठ न सका। व्यापारी को मां द्वारा की जाने वाली ये वजह समझ आ गई और उसने मांफी मांगने के बाद वेदी के साथ मंदिर बनवा डाला।

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