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शिक्षक होने के सही मायने

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डॉ० कुसुम रानी नैथानी

(लेखिका राष्ट्रपति पुरस्कार एवं शैलैश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार से सम्मानित भूतपूर्व प्रधानाचार्या एवं वर्तमान में जिला पुलिस शिकायत प्राधिकरण देहरादून की माननीय सदस्या हैं।)

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समाज और आने वाली पीढ़ियों के निर्माण की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है एक शिक्षक बनना। यह एक पेशा नहीं बल्कि दायित्व है जो केवल किताबों का ज्ञान देने तक सीमित नहीं है वरन् जीवन मूल्यों, सोचने की क्षमता और आत्मविश्वास से बच्चों को संवारता है।

सही अर्थों में शिक्षक वही है जो बच्चे में प्रश्न पूछने की जिज्ञासा पैदा करे और उनके भीतर ज्ञान की प्यास जगाए। वह केवल उत्तर देने वाला नहीं अपितु सही दिशा दिखाने वाला मार्गदर्शक होता है। शिक्षक का कार्य केवल जानकारी बाँटना नहीं बल्कि सही-गलत में अंतर समझाना है। वह केवल क्लासरूम का नहीं बल्कि जीवन का भी गुरु होता है जो बच्चों को पढ़ाना ही नहीं अपितु जीना सीखाता है। वह परिवार और समाज के बीच एक पुल की भूमिका निभाता है ।

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शिक्षक का आचरण बच्चों के जीवन पर अपनी छाप छोड़ता है। ईमानदारी , धैर्य ,सहयोग और संवेदनशीलता उसके व्यक्तित्व का हिस्सा होते हैं ।वह विषय को केवल किताबों तक सीमित न रखकर जीवन और अनुभव से जोड़ बच्चों को पढ़ाई का सही उपयोग समझाता है। यह दायित्व कठिन जरूर है लेकिन जब एक शिक्षक अपने विद्यार्थियों को आत्मविश्वासी, जिम्मेदार और संवेदनशील इंसान बनते देखता है तो वह उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि होती है।
शिक्षक बच्चों की कमजोरियों को उसकी पहचान नहीं बनने देते बल्कि उन्हें उनकी ताकत में बदलने का प्रयास करता है ।वह विद्यार्थी को एक बीज की तरह देखता है जिसे धैर्य ,मेहनत और सही वातावरण की जरुरत होती है। जैसे माली पौधों को उसकी प्रकृति के अनुसार संवारता है वैसे ही शिक्षक हर बच्चे को उसकी क्षमता के अनुरूप बढ़ने का अवसर देता है। शिक्षक होने का मतलब ही बाल मनोविज्ञान को समझना है ।हर बच्चा अलग पृष्ठभूमि, अलग क्षमता के साथ आता है ।किसी को जल्दी समझने में आनंद मिलता है तो कोई धीरे-धीरे ही पकड़ बना पाता है। व्यावहारिक रूप से यही वह बिंदु है जहां शिक्षक की भूमिका सबसे अहम हो जाती है।एक ही पाठ को अलग-अलग तरीकों से समझाना, बच्चों की सोचने की आदतों को पहचानना और उनकी जरुरत के अनुसार उन्हें मार्ग दिखाना उसका असली स्वरूप है।
हर बच्चा एक जैसा नहीं होता। किसी की रुचि गणित में होती है तो कोई भाषा या चित्रकला में निपुण होता है ।एक शिक्षक बच्चों की इन क्षमताओं को पहचान कर उसके अनुरूप भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है जो बच्चों को आत्मविश्वासी और अपने सपनों को साकार करने योग्य बनाती है।
आज का समय तकनीकी और सूचनाओं से भरा पड़ा है। गूगल या इंटरनेट पर बच्चे किसी भी प्रश्न का उत्तर पा सकते हैं। शिक्षक का महत्व यहां पर और बढ़ जाता है जो यह सिखाता है कि इस जानकारी का प्रयोग किस तरह किया जाए और कौन सी जानकारी विश्वसनीय है । बच्चों के मन में उम्मीद जगाना ,उसके भीतर ईमानदारी ,संवेदनशीलता और जिम्मेदारी भरना शिक्षक के लिए जरूरी है।
शिक्षक बच्चे के लिए केवल ज्ञान का स्रोत के साथ व्यवहार और मूल्यों का भी आदर्श होता है। बच्चे अक्सर वही करने लगते हैं जो वे अपने शिक्षक में देखते हैं। अगर शिक्षक समय का पालन करता है, ईमानदारी से कार्य करता है और अपने व्यवहार में संयम रखता है तो यह सब धीरे-धीरे बच्चों की आदतों में भी उतरने लगता है।

एक शिक्षक अपने कार्य में तभी सफल होता है जब वह अनुशासन और करुणा के बीच संतुलन बनाता है। केवल अनुशासन कठोरता बनकर रह जाएगा और केवल करुणा बच्चों को लापरवाह बना सकती है। इसलिए शिक्षक के लिए यह समझना आवश्यक है कि कब नियमों पर दृढ़ रहना है और कब नरमी से समझाना है।
अनुशासन ही वह ढाँचा है, जिसके भीतर शिक्षक ज्ञान, मूल्य और व्यवहार को आकार देता है। यह बच्चों को जीवन में दिशा देता है और उन्हें समाज में जिम्मेदार नागरिक बनने की तैयारी कराता है।अनुशासन का अर्थ केवल कठोरता नहीं है बल्कि बच्चों को यह समझाना है कि नियम पालन उनके हित में है। समय का पालन करना, अभ्यास में निरंतरता रखना और व्यवहार में संयम सीखना इन्हीं से संभव होता है।
केवल पुराने ढर्रे पर पढ़ाना नहीं बल्कि समय के साथ नए तरीके अपनाना भी शिक्षक का दायित्व है। बच्चे अब केवल किताबों पर निर्भर नहीं हैं, वे तकनीक से घिरे हुए हैं। ऐसे में शिक्षक यदि अपने पाठ को नए प्रयोगों, गतिविधियों, प्रोजेक्ट कार्यों और तकनीकी साधनों के साथ जोड़ता है, तो बच्चे पढ़ाई को अधिक आत्मसात करते हैं। नवाचार का अर्थ केवल डिजिटल साधनों का उपयोग नहीं है, बल्कि कठिन विषयों को सरल उदाहरणों और रचनात्मक तरीकों से समझाना भी है।व्यावहारिक स्तर पर नवाचार के रूप में गणित के पाठ को खेल और पहेलियों के माध्यम से पढ़ाया जाए, विज्ञान को प्रयोगों से जोड़ा जाए, भाषा को कहानियों और नाटकों के जरिए जीवंत किया जाए। जब शिक्षक पाठ्यक्रम को वास्तविक जीवन से जोड़कर प्रस्तुत करता है, तभी शिक्षा बच्चों के मन में गहरी छाप छोड़ती है।

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नवाचार का दूसरा पहलू यह भी है कि शिक्षक स्वयं सीखते रहें। बदलते समय के साथ नई पद्धतियाँ, नई तकनीक और नई चुनौतियाँ सामने आती हैं। अगर शिक्षक भी निरंतर सीखने के लिए तैयार हैं तो वे बच्चों को प्रासंगिक शिक्षा दे सकते हैं।
इस प्रकार शिक्षक होने के लिए अनुशासन, करुणा, धैर्य और मूल्य जितने आवश्यक हैं, उतना ही नवाचार भी है। अनुशासन से शिक्षा में स्थिरता आती है और नवाचार से उसमें ताजगी। दोनों का संतुलन ही शिक्षण को सफल बनाता है और विद्यार्थियों को जीवनभर सीखने की प्रेरणा देता है।

शिक्षक होने का मतलब है बच्चों को ज्ञान के साथ अनुशासन, करुणा, मूल्य और नवाचार का संतुलित वातावरण देना। वह उनकी क्षमताएं पहचान कर उनके भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर उन्हें केवल पढ़ाई में ही नहीं बल्कि जीवन जीने की कला में भी सक्षम बनाता है। जब बच्चे एक शिक्षक से केवल पाठ ही नहीं बल्कि जीवन की शिक्षा भी सीखते हैं तभी शिक्षण का असली मकसद पूरा होता है।

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