Pahaad Connection
उत्तराखंड

जागेश्वर मंदिर : यहां लव-कुश ने आयोजित किया था यज्ञ

Advertisement

जागेश्वर मंदिर मे यज्ञ एवं अनुष्ठान से पूरी हो सकती हैं मंगलकारी मनोकामनाएं
जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह
जागेश्वर धाम भगवान सदाशिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक

हिमालय पर्वतमाला पर अल्मोड़ा नगर से पूर्वोत्तर दिशा में पिथौरागढ़ मार्ग पर 36 किमी की दूरी पर पवित्र जागेश्वर धाम स्थित है। जागेश्वर की तल से ऊंचाई 1870 मीटर है। उत्तराखंड में अल्मोड़ा के पास स्थित जागेश्वर धाम भगवान सदाशिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। कहा जाता है कि यह प्रथम मंदिर है जहां लिंग के रूप में शिवपूजन की परंपरा सर्वप्रथम आरंभ हुई। जागेश्वर को उत्तराखंड का पांचवां धाम भी कहा जाता है। जागेश्वर धाम को भगवान शिव की तपस्थली माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग आठवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसे योगेश्वर नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर शिवलिंग पूजा के आरंभ का गवाह माना जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव एवं सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं, जिसका भारी दुरुपयोग होने लगा।

Advertisement

आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य यहां आए और उन्होंने इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। अब यहां सिर्फ यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं। यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव-कुश ने यहां यज्ञ आयोजित किया था, जिसके लिए उन्होंने देवताओं को आमंत्रित किया। कहा जाता है कि उन्होंने ही सर्वप्रथम इन मंदिरों की स्थापना की थी। जागेश्वर में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं। जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह है। मंदिरों का निर्माण पत्थरों की बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है। इसके 4-5 मंदिरों में रोज पूजा-अर्चना होती है। सबसे विशाल तथा प्राचीनतम महामृत्युंजय शिव मंदिर यहां का मुख्य मंदिर है इसके अलावा जागेश्वर धाम में भैरव, माता पार्वती,केदारनाथ, हनुमान, मृत्युंजय महादेव, माता दुर्गा के मंदिर भी विद्यमान है।

Advertisement

इनमें 108 मंदिर भगवान शिव जबकि 16 मंदिर अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं। महामृत्युंजय, जागनाथ, पुष्टि देवी व कुबेर के मंदिरों को मुख्य मंदिर माना जाता है। स्कंद पुराण, लिंग पुराण मार्कण्डेय आदि पुराणों ने जागेश्वर की महिमा का बखूबी बखान किया है। मनुष्य वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग न जा पाए, शंकर प्रिय काशी, मायानगरी (हरिद्वार) भी न जा सके तो जागेश्वर धाम में भगवान शिव के दर्शन जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि सुर, नर, मुनि से सेवित हो भगवान भोलेनाथ यहां जागृत हुए थे इसलिए इस जगह का नाम जागेश्वर पड़ा। ऐसी मान्यता है कि देवाधिदेव महादेव यहां आज भी वृक्ष के रूप में मां पार्वती सहित विराजते हैं। देवदार के घने वृक्षों से घिरी यह घाटी एक मनोहारी तीर्थस्थल है। मान्यता है कि भगवान शिव-पार्वती के युगल रूप के दर्शन यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित नीचे से एक और ऊपर से दो शाखाओं वाले विशाल देवदार के वृक्ष में करते हैं। यह बहुत प्राचीन पेड़ बताया जाता है। यह भी सत्य है कि भगवान शिव ही एकमात्र देवता हैं, जिन्होंने सदैव मृत्यु पर विजय पाई। मृत्यु ने कभी भी शिव को पराजित नहीं किया। इसी कारण उन्हें मृत्युंजय के नाम से पुकारा गया।

जागेश्वर के इन मंदिरों का जीर्णोद्धार राजा शालिवाहन ने अपने शासनकाल में कराया था। पौराणिक काल में भारत में कौशल, मिथिला, पांचाल, मस्त्य, मगध, अंग एवं बंग नामक अनेक राज्यों का उल्लेख मिलता है। कुमाऊं कौशल राज्य का एक भाग था। माधवसेन नामक सेनवंशी राजा देवों के शासनकाल में जागेश्वर आया था। चंद्र राजाओं की जागेश्वर के प्रति अटल श्रद्धा थी। देवचंद्र से लेकर बाजबहादुर चंद्र तक ने जागेश्वर की पूजा-अर्चना की। बौद्ध काल में भगवान बद्री नारायण की मूर्ति गौरी कुंड और जागेश्वर की देव मूर्तियां ब्रह्मकुंड में कुछ दिनों पड़ी रहीं। जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने इन मूर्तियों की पुनर्स्थापना की।

Advertisement


जागेश्वर धाम में सारे मंदिर केदारनाथ शैली यानी नागर शैली से बने हुए हैं। अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर को भगवान शिव की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है। स्थानीय लोगों के विश्वास के आधार पर इस मंदिर के शिवलिंग को नागेश लिंग घोषित किया गया। इस मंदिर के किनारे एक पतली सी नदी की धारा भी बहती है। यह एक मनोहारी तीर्थस्थल और यहां की खूबसूरती वाकई देखने वाली है। हर वर्ष यहां सावन के महीने में श्रावणी मेला लगता है। देश ही विदेश से भी यहां भक्त आकर भगवान शंकर का रूद्राभिषेक करते हैं। यहां रूद्राभिषेक के अलावा, पार्थिव पूजा, कालसृप योग की पूजा, महामृत्युंजय जाप जैसे पूजन किए जाते हैं। महाशिवरात्रि पर भी यहां विशेष आयोजन किए जाते हैं और इस अवसर पर यहां पर भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति के यज्ञ में माता सती के आत्मदाह से दुखी भगवान शिव ने यज्ञ की भस्म लपेट कर दारुक वन के घने जंगलों में लंबे समय तक तप किया। इसलिए यह जगह शिव की तपस्थली के रूप में जानी जाती है। इन्हीं जंगलों में वशिष्ठ आदि सप्त ॠषि अपनी पत्नियों सहित कुटिया बनाकर तप करते थे। एक बार भगवान शिव दिगंबर अवस्था में ध्यान में लीन थे उस दौरान एक दिन इन सप्त ॠषियों की पत्नियां जंगल में कंदमूल, फल एवं लकड़ी आदि के लिए गई थीं तो उनकी नजर दिगंबर शिव पर पड़ी। भगवान शिव के सुगठित शरीर को देखकर ॠषियों की पत्नियां शंकर भगवान पर मोहित हो गई। शंकर भगवान अपनी तपस्या में रम थे, उन्होंने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया फिर ॠषियों की पत्नियां कामस्वरूप में अंधी होकर वहीं मूर्छित हो कर गिर गईं। जब वे सब पूरी रात कुटियों में वापस नहीं आई तो सुबह ॠषिगण उन्हें ढूंढने निकले।

Advertisement


इतिहास :- उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरीराजा थे। जागेश्वर मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ। इसी कारण मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखलाई पडती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है। कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल। बर्फानी आंचल पर बसे हुए कुमाऊं के इन साहसी राजाओं ने अपनी अनूठी कृतियों से देवदार के घने जंगल के मध्य बसे जागेश्वर में ही नहीं वरन् पूरे अल्मोडा जिले में चार सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया जिसमें से जागेश्वर में ही लगभग २५० छोटे-बडे मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण लकडी तथा सीमेंट की जगह पत्थर की बडी-बडी शिलाओं से किया गया है। दरवाजों की चौखटें देवी देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकडी का भी प्रयोग किया गया है।

जागेश्वर को पुराणों में हाटकेश्वर और भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूणके नाम से जाना जाता है। पतित पावन जटागंगा के तट पर समुद्रतल से लगभग 6200 फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र जागेश्वर की नैसर्गिक सुंदरता अतुलनीय है। कुदरत ने इस स्थल पर अपने अनमोल खजाने से खूबसूरती जी भर कर लुटाई है। लोक विश्वास और लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर संसार के पालनहारभगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक है।

Advertisement
Advertisement

Related posts

गर्भवती में एनीमिया का बढ़ रहा प्रकोपः डॉ. सुजाता संजय

pahaadconnection

यूट्यूबर सौरभ जोशी ने मांगी लोगों से माफी

pahaadconnection

दून सिख वेलफेयर सोसायटी के नेत्र चिकित्सा शिविर में 509 मरीजों की हुई जाँच

pahaadconnection

Leave a Comment