‘लो पकड़ो, सँभालो अपनी मुर्गी!’ ऐसा बोल कर बिना देखे महमूद साहब के कंडक्टर वाले किरदार का ललिता पवार के किरदार को साँप थमाने वाला और फिर मुर्गी की अपने हाथ में साँप देख कर महमूद का अंदर तक हिल जाने वाला दृश्य आज तक कौन भूल पाया होगा? मैं बात कर रहा हूँ 1972 में रिलीज़ हुई और सी.रामानाथन द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘बॉम्बे टू गोआ’ का जो 1966 में आई फ़िल्म ‘मद्रास टू पॉन्डिचेरी’ का रीमेक थी। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार अमिताभ बच्चन, अरुणा ईरानी, शत्रुघ्न सिन्हा और महमूद आदि थे। फ़िल्म अरुणा ईरानी के किरदार के घर से भाग कर रोडवेज़ की बस में बंबई से गोआ के सफर की कहानी है जिसमें उसका साथ अमिताभ बच्चन का किरदार देता है। फ़िल्म में लेजेंडरी गायक किशोर दा का भी एक छोटा सा किरदार है जो सफर के दौरान ही मिलता है। वैसे तो फ़िल्म में अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे काफी बड़े-बड़े और भारी-भरकम नाम हैं पर उन दिनों महमूद जी का नाम इतना ज्यादा था कि कई बार उनका काम और उन पर फिल्माया गया कुछ मिनटों का हास्य दृश्य फ़िल्म के बाकी कलाकारों और बाकी पूरी फिल्म पर भी भारी पड़ जाता था। इतना ही नहीं, कभी-कभी तो महमूद जी को मिलने वाली फीस भी फ़िल्म के हीरो से भी ज्यादा होती थी। कुछ ऐसा जलवा था उन समय महमूद साहब का जो इस फ़िल्म ‘बॉम्बे टू गोआ’ में भी छप्पर फाड़ के दिखाई दिया था। वैसे तो फ़िल्म में एक्शन, थ्रिल और थोड़ा सा सस्पेंस भी था पर फिर भी सारा क्रेडिट महमूद साहब अपनी कॉमेडी से ले गए थे। फ़िल्म की कहानी ठीक-ठाक है और कम से कम बोर तो नहीं होने देती। फ़िल्म के कलाकारों का काम काफी अच्छा है। अरुणा ईरानी को नकारात्मक किरदारों से थोड़ा हट के सकारात्मक किरदार में देख कर अच्छा लगता है। फ़िल्म के कॉमेडी दृश्य काफी मजेदार हैं। फ़िल्म में संगीत निर्देशन राहुल देव बर्मन का था। फ़िल्म का एक गीत ‘देखा ना हाय रे सोचा ना हाय रे’ आज भी लोग सुनना पसंद करते हैं।