Pahaad Connection
Breaking News
Breaking Newsबॉलीवुड

गुलज़ार ने लिखी थी फ़िल्म ‘गुड्डी’ की कहानी

Advertisement

। 1971 में आई हृषिकेश मुखर्जी की फ़िल्म ‘गुड्डी’ एक ऐसी फिल्म है कि जिसे एक बार देखने के बाद ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप हँसते-मुस्कुराते हुए भी समाज और हमारी देसी फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई गंभीर मुद्दों के बारे में सोचने पर मजबूर ना हो जाएं। इस फ़िल्म की कहानी गुलज़ार जी ने लिखी थी। इस फ़िल्म के कलाकारों में प्रमुख नाम जया भादुड़ी (गुड्डी), उत्पल दत्त (प्रो. गुप्ता), समित भंजा (नवीन), धर्मेंद्र और असरानी (कुंदन) आदि थे। इस फ़िल्म में गुड्डी और धर्मेंद्र के ज़रिए ये दिखाया गया था कि कैसे फिल्मी सितारों की पर्दे पर दिख रही जगमगाती, झिलमिलाती, जो larger than life ज़िंदगी कईयों को बेहद आकर्षित करती है, वो असल जिंदगी में वैसी नहीं होती, जैसी हमें दिखाई जाती है या पर्दे पर दिख रही होती है। ये फ़िल्म हमें दिखाती है कि अभिनेता/अभिनेत्रियाँ भी सबकी तरह आम इंसान ही होते हैं जिनमें बाकी सबकी तरह ही मानवीय क्षमताएं और संवेदनाएँ होती हैं। इसी तरह कुंदन की कहानी के जरिये ये दिखाया गया है कि सपनों के पीछे भागना गलत नहीं होता पर बगैर पूरा सच जाने और अपने पीछे अपनों को ही और अपनी जिम्मेदारियों को पीछे छोड़ कर सिर्फ अपने बारे में, अपने सपनों के बारे में सोच कर उनके पीछे भागना सरासर बेवकूफी होती है और इससे सिवाय दुःख, दर्द और पछतावे के किसी को कुछ भी हाथ नहीं लगता। ये फ़िल्म आपको कभी गुड्डी की मासूमियत दिखा कर आपके होंठों पर मुस्कान ले आती है, कभी धर्मेंद्र के हाथों प्रोफेसर दत्त को मुक्के पड़वा कर आपको हँसा देती है, कभी कुंदन की हरकतें देख कर आपको गुस्सा दिला देती है और उसके किरदार से चिढ़ पैदा करवा देती है तो कभी  उसके ज़िंदगी में उसके हालात दिखा कर आपकी आँखें भी नम कर देती है, कभी नवीन का गुड्डी के लिए पवित्र और निश्छल प्यार देख कर आपके हृदय में भी प्रेम जगा देती है तो कभी फ़िल्म इंडस्ट्री और इसमें काम करने वाले लोगों की कभी गुड़ सी मीठी तो कभी करेले सी सच्चाई दिखा कर आपको सोचने पर मजबूर कर देती है। फ़िल्म के कलाकारों जैसे उत्पल दत्त, जया भादुड़ी और धर्मेंद्र के अभिनय के बारे में मैं क्या कहूँ। ये तो आप सब खुद ही मुझसे बेहतर जानते होंगे। फ़िल्म की कहानी एकदम अलग और बेहद खूबसूरत है। फ़िल्म के संवाद काफी उच्च कोटि के हैं। फ़िल्म के गीत अच्छे हैं और दो गीत ‘बोले रे पपीहरा’ और ‘हमको मन की शक्ति देना’ काफी लोकप्रिय हुए थे जिनमें से ‘हमको मन की शक्ति देना’ तो देश के कई स्कूलों में आने वाले कई दशकों तक प्रार्थना के रूप में गाया जाता रहा था।

 

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement

Related posts

मुख्यमंत्री ने ली गौरीकुंड में हुए हादसे के संबंध में अधिकारियों से जानकारी

pahaadconnection

उत्तराखंड बचाओ आंदोलन टीम ने किया बैठक का आयोजन

pahaadconnection

नवसृजित पुलिस चौकी चमियाला का आकस्मिक निरीक्षण

pahaadconnection

Leave a Comment