देहरादून। 1996 में संजय लीला भंसाली के निर्देशन में बनी पहली फ़िल्म ‘खामोशी- द म्यूजिकल’ आयी थी। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकारों में नाना पाटेकर, सीमा बिस्वास, मनीषा कोइराला, सलमान खान, हेलेन और रघुवीर यादव आदि शामिल थे। फ़िल्म की पूरी कहानी ऐनी (मनीषा कोइराला) के इर्द-गिर्द घूमती रहती है जिसमें वो तो सामान्य इंसानों की तरह सुन और बोल सकती है पर उसके माता-पिता जोसेफ ब्रिगेंजा (नाना पाटेकर) और फ्लेवी ब्रिगेंजा (सीमा बिस्वास) दोनों ही गूँगे और बहरे होते हैं। अपने गूँगे और बहरे दोनों होने के कारण जोसफ ने बेहद मुश्किलों से ऐनी को पाला, पोसा और बड़ा किया होता है। ऐनी की ज़िंदगी में बस दो ही चीज़ें हैं, एक तो उसके माँ-बाप और दूसरा संगीत। उसे गाने का काफी शौक़ होता है और गाने की याद प्रेरणा उसे अपनी दादी मारिया ब्रिगेंजा (हेलेन) से मिली होती है। काफी मुश्किलों से जन्मे अपने छोटे भाई सैम की एक हादसे में मौत के बाद ऐनी और उसका परिवार बुरी तरह से टूट जाता है और ऐनी का संगीत का साथ भी छूट जाता है। कुछ समय बाद राज (सलमान खान) के ज़िंदगी में आने के बाद ऐनी एक बार फिर से गाना शुरू करती है और इसी के साथ ऐनी का अपने माँ-बाप को राज को स्वीकार करने के लिए मनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। ये फ़िल्म गूँगे-बहरों की ज़िंदगी से जुड़ी समस्याओं जैसे बेहद संजीदा और संवेदनशील विषय को बेहद खूबसूरती और मार्मिक तरीके से पेश करती है। फ़िल्म के कुछ दृश्य जैसे जोसेफ का काम माँगने के लिए जाना, ऐनी के पहली बार गाना रिकॉर्ड होते समय जोसेफ और फ्लेवी का बहरे होते हुए भी ऐनी को गाना गाते हुए देखना, सैम की मौत के बाद पूरे परिवार का टूटना, ऐनी के साथ हादसे या फ़िल्म का क्लाइमेक्स दिल को छू जाते हैं। फिल्मों को सिर्फ मनोरंजन के लिए देखने वालों को ये फ़िल्म बेहद धीमी और पकाऊ लग सकती है। शायद इसी वजह से जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई थी तब बुरी तरह से फ्लॉप रही थी क्योंकी तब दौर पूरी तरह से सिर्फ मनोरंजन से भरी व्यावसायिक फिल्मों का था। वैसे भी ऐसी cult फिल्मों के ज्यादा दर्शक होते भी नहीं हैं। हाँ, पर अगर किसी को सार्थक और संवेदनशील सिनेमा पसंद है और उसे बिना आइटम सॉन्ग वाली फ़िल्में भी पसंद हैं तो ये फ़िल्म ऐसे दर्शकों के लिए किसी अमूल्य नगीने से कम नहीं है। शायद इसी वजह से ये फ़िल्म cult और niche फिल्मों की श्रेणी में आती है। इतना ही नहीं, संजय लीला भंसाली की निर्देशित सभी फिल्मों में ये उनकी सबसे बेहतरीन फ़िल्म मानी जाती है और इस फ़िल्म ने कई फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार अपने नाम किये थे। फ़िल्म में गूँगे-बहरे दंपत्ति का किरदार निभाने वाले नाना पाटेकर, सीमा बिश्वास के साथ मनीषा कोइराला का भी अभिनय जबरदस्त है। इस फ़िल्म को मनीषा कोइराला के अभिनय के लिहाज से उनके फिल्मी करियर की सबसे अच्छी फिल्म माना जाता है। फ़िल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक काफी अच्छा है। फ़िल्म के नाम में ही म्यूजिकल जुड़ा है तो फ़िल्म का गीत-संगीत तो खूबसूरत होना ही था। फ़िल्म में संगीत जतिन-ललित का है और गीत मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे हैं। फ़िल्म के चार गीत ‘आज मैं ऊपर, आसमाँ नीचे’, ‘बाँहों के दरमियान, दो प्यार मिल रहे हैं’, ‘ये दिल सुन रहा है तेरे दिल की ज़ुबाँ’ और ‘गाते थे पहले अकेले’ सुपरहिट रहे थे।