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संजीदा अभिनेताओं में शुमार थे बलराज साहनी

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बलराज साहनी को भारतीय सिनेमा की दुनिया के सबसे संजीदा अभिनेताओं में शुमार किया जाता है। देवानंद, दिलीप कुमार और राज कपूर की हिट मशीन के सामने बलराज साहनी की अपनी एक अलहदा पहचान थी। विमल रॉय की दो बीघा जमीन में उन्होंने अदाकारी की सारी सीमाओं को ध्वस्त कर दिया था और हिंदी सिनेमा की सबसे बेहतरीन फ़िल्म रच डाली थी। अनपढ़, दिल भी तेरा हम भी तेरे सरीखी फिल्में करने वाले बलराज साहनी को एक प्रतिभा खोजी के तौर पर भी याद किया जाता है। ऐसी ही एक प्रतिभा थे उनके दोस्त– बद्रू। बद्रू एक बेहतरीन हास्य अभिनेता थे और बलराज साहब के साथ थिएटर किया करते थे। उन दिनों चेतन आनंद फ़िल्म ‘बाजी’ पर काम कर रहे थे और उसके कॉमिक किरदार के लिए उन्हें एक अभिनेता की तलाश थी। एक दिन बलराज साहनी,  देवानंद और गुरुदत्त के साथ देव साहब के भाई चेतन आनंद के ऑफिस में बैठे थे। फ़िल्म ‘बाजी’ की स्क्रिप्ट पर चर्चा चल रही थी। केबिन के बाहर अचानक कुछ शोर हुआ। एक शराबी जबरन ऑफिस में घुस गया था और क्लर्क को परेशान कर रहा था। काफी देर तक जब वह नहीं गया तो देवानंद उसको समझाने पहुंचे। अब शराबी उनसे मसखरापन करने लगा। उसकी मजाकिया हरकतों पर वहाँ मौजूद सब लोग हँसते रहे। चेतन आनंद अपने केबिन से यह सब देख रहे थे और आखिरकार उनका सब्र टूट गया। उन्होनें उस शराबी को दफ्तर से बाहर निकालने का फरमान सुना दिया। जब दफ्तर के सुरक्षाकर्मी उस शराबी को बाहर करने लगे तो बलराज साहनी ने उन्हें रोक दिया। उन्होंने शराबी से सबको सलाम करने को कहा। यह सुनते ही वह व्यक्ति अचानक से गंभीर हो गया और अदब से सबको अपना परिचय दिया। वह कोई और नहीं बल्कि बलराज साहब के दोस्त बद्रू थे, जिन्हें खुद बलराज साहब ने ऐसा करने के लिए कहा था। यह सुनकर चेतन आनंद, देवानंद और गुरुदत्त को समझ ही नहीं आया कि आखिर बलराज साहब ने ऐसा क्यों करने को कहा।  तब बलराज साहब ने बताया कि यह मेरा दोस्त है बद्रू। इसको इसकी प्रतिभा के दम पर फ़िल्म में काम मिले, न कि मेरी दोस्ती की वजह से। इसलिए मैंने इसको यह ड्रामा करने को कहा था। चेतन आनंद मुस्कुराये और बद्रू को फ़िल्म में एंट्री देने की हिमायत कर दी। यह बद्रू के अदाकार जीवन की अनोखी शुरुआत थी। यह शख्स कोई और नहीं बल्कि जॉनी वॉकर थे, जो बॉलीवुड के पहले स्वतंत्र हास्य अभिनेता थे। उनकी लोकप्रियता फ़िल्म के मुख्य अभिनेताओं को भी मात देती थी। निर्विवाद रूप से इसके पारखी थे बलराज साहनी।

 

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