Pahaad Connection
Breaking News
Breaking Newsउत्तराखंड

भारत-तिब्बत विरासत पर संगोष्ठी का आयोजन

Advertisement

देहरादून 27 सितम्बर। भारतीय सेना की मध्य कमान ने गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर, लैंसडाउन के सुरजन सिंह सभागार में “अंतर्निर्मित जड़ें: साझा भारत-तिब्बत विरासत” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ सैन्य अधिकारी, राजनयिक, शिक्षाविद और रणनीतिक विशेषज्ञ भारत और तिब्बत के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक और सामरिक संबंधों, विशेष रूप से उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के संदर्भ में, का अन्वेषण करने के लिए एकत्रित हुए। इस संगोष्ठी का उद्देश्य इस बात पर एक सुविचारित बहस छेड़ना था कि इस क्षेत्र के ऊँचे दर्रों पर सदियों से चले आ रहे सभ्यतागत आदान-प्रदान किस प्रकार समकालीन भू-राजनीति और सीमा प्रबंधन को आकार दे रहे हैं। सीमाओं के औपचारिक होने से बहुत पहले, नीति, माना और लमखागा जैसे प्राचीन व्यापार मार्गों को वाणिज्य, तीर्थयात्रा और सांस्कृतिक संवाद के महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में रेखांकित किया गया था। इन मार्गों ने जीवंत समुदायों को जीवित रखा, जिनकी परंपराएँ और आजीविकाएँ हिमालय के पठार के पार के समुदायों के साथ गहराई से जुड़ी हुई हैं। मुख्य भाषण देते हुए, मध्य कमान के चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल नवीन सचदेवा ने क्षेत्र की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासतों की गहरी सराहना के साथ सैन्य तैयारियों को संतुलित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हिमालय में संप्रभुता और सुरक्षा को उस विरासत से अलग करके नहीं देखा जा सकता जिसने सदियों से भारत और तिब्बत को बांध रखा है। संगोष्ठी में “प्रथागत सीमा” और उसके ऐतिहासिक विकास, ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र में बौद्ध धर्म और कला के प्रभाव और 1960 के दशक के बाद ऊंचे पहाड़ों की अर्थव्यवस्था, भूगोल और समाज में बदलाव जैसे विषयगत सत्र शामिल थे। एक पैनल चर्चा में तिब्बत में पारिस्थितिक नाजुकता, असममित व्यापार परस्पर निर्भरता, दक्षिण एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव, भारत-चीन सैन्य संबंधों का भविष्य और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग की संभावनाओं जैसे समकालीन मुद्दों की आगे जांच की गई। उन्होंने वक्ताओं के विद्वत्तापूर्ण योगदान की सराहना की और सेना, शिक्षा जगत और नागरिक समाज के बीच संवाद को बढ़ावा देने में सेना की भूमिका की पुष्टि की। संगोष्ठी का समापन इस सामूहिक मान्यता के साथ हुआ कि सीमाएँ भले ही भूभाग को परिभाषित करती हों, लेकिन साझा विरासत ही भारत की उत्तरी सीमांत में पहचान, लचीलापन और दीर्घकालिक सुरक्षा का आधार है।

Advertisement
Advertisement

Related posts

मुख्यमंत्री ने किया सहायक सम्भागीय परिवहन कार्यालय रामनगर का औचक निरीक्षण

pahaadconnection

राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट को चरितार्थ करती भाजपा सरकार : गरिमा मेहरा दसौनी

pahaadconnection

मुख्यमंत्री ने अर्पित की सरदार वल्लभ भाई पटेल को श्रद्धांजलि

pahaadconnection

Leave a Comment