दो दिन बाद दिवाली हैं। दिवाली भगवान श्री राम को समर्पित हैं। कहा जाता है की जब भगवान श्री राम ने रावण का वध किया उसके बाद वे अयोध्या लौटे अपनी पत्नी माता सीता और अपने अनुज लक्ष्मण के साथ वो भी पुरे 14 वर्षो में , तो अयोध्यावासियों ने पूरी अयोध्या में दिए जला कर उनका स्वागत किया था। उस दिन अमावस्या भी थी तो अंधरे को दूर करने के लिए भी दिए लगाए गए थे।
दिवाली को काली चौदस या नरक चतुर्दशी भी कहते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, किसी राज्य में नरकासुर नामक एक राक्षस रहता था. कहते हैं उसने इंद्र देव को पराजित करके देवी माता के कान की बाली छीन लिया था. इसके अलावा वह असुर देवी-देवताओं और ऋषियों की बेटियों को अपहरण करके उन्हें अपने घर में बंदी बनाकर रखा था.
महिलाओं के प्रति नरकासुर के द्वेष भाव को देखकर सत्यभामा ने भगवान श्रीकृष्ण से निवेदन किया कि उन्हें नरकासुर के बध का अवसर दिया जाए. कहा जाता है कि नरकासुर को वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु किसी महिला के हाथों ही होगी. कथा में आगे वर्णन मिलता है कि सत्यभामा भगवान श्रीकृष्ण के रथ पर बैठकर नकरासुर का वध करने के लिए गईं. जिसके बाद सत्यभामा ने युद्ध में नरकासुर का वध करके सभी कन्याओं को छुड़वा लिया.
जिसके बाद नरकासुर की माता ने घोषणा की कि उसके पुत्र के मृत्यु के दिन को मातम के तौर पर ना मनाकर एक उत्सव के रूप में मनाया जाए. यही वजह है कि इस दिन छोटी दिवाली मनाई जाती है और इस दिन को नरक चतुर्दशी कहते हैं.
दिवाली का त्यौहार पुरे 5 दिन चलता हैं। धनतेरस से शुरू हो कर भाई दूज तक दिवाली को माना जाता हैं। धनतेरस के दिन हम माँ लक्ष्मी और धन्वन्तरि की पूजा करते हैं। उसके बाद नरक चौदस आती हैं जिसे कुत्तो की दिवाली कहते हैं।
फिर दिवाली के दिन माँ लक्ष्मी संग गणपति और श्री हरी की भी पूजा होती है। उसके बाद गोवर्धन और अंत में भाई दूज आता हैं। सभी दिनों में हम नए नए कपड़े पहनकर ख़ुशी खुशी त्योहार मनाते हैं।