गोपीनाथ मंदिर में गढ़ा है भगवान शिव का त्रिशुल
भगवान शिव ने कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका तो वह यहाँ गढ़ गया
त्रिशूल को कोई सच्चा भक्त इसे छू भी ले तो इसमें कम्पन होने लगता है।
गोपीनाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है जो भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले के गोपेश्वर में स्थित है। गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर ग्राम में है जो अब गोपेश्वर कस्बे का भाग है। गोपीनाथ मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर अपने वास्तु के कारण अलग से पहचाना जाता है; इसका एक शीर्ष गुम्बद और ३० वर्ग फुट का गर्भगृह है, जिस तक २४ द्वारों से पहुँचा जा सकता है। मंदिर के आसपास टूटी हुई मूर्तियों के अवशेष इस बात का संकेत करते हैं कि प्राचीन समय में यहाँ अन्य भी बहुत से मंदिर थे। मंदिर के आंगन में एक ५ मीटर ऊँचा त्रिशूल है, जो १२ वीं शताब्दी का है और अष्ट धातु का बना है। इस पर नेपाल के राजा अनेकमल्ल, जो १३ वीं शताब्दी में यहाँ शासन करता था, का गुणगान करते अभिलेख हैं। उत्तरकाल में देवनागरी में लिखे चार अभिलेखों में से तीन की गूढ़लिपि का पढ़ा जाना शेष है। दन्तकथा है कि जब भगवान शिव ने कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका तो वह यहाँ गढ़ गया। त्रिशूल की धातु अभी भी सही स्थित में है जिस पर मौसम प्रभावहीन है और यह एक आश्वर्य है। यह माना जाता है कि शारिरिक बल से इस त्रिशुल को हिलाया भी नहीं जा सकता, जबकि यदि कोई सच्चा भक्त इसे छू भी ले तो इसमें कम्पन होने लगता है।
गोपीनाथ मंदिर की राजा सगर से जुड़ी कथा :- भगवान श्रीराम के वंशजों में से एक राजा सगर का शासन यहाँ पर हुआ करता था। उन्हीं के नाम पर गोपेश्वर से कुछ दूरी पर सगर गाँव भी हैं। राजा सगर के समय एक गाय प्रतिदिन इस क्षेत्र में आया करती थी। उसके बारे में यह मान्यता थी कि उसके थनों से अपने आप दूध बहकर निकलता हैं। एक दिन राजा सगर ने उस गाय का पीछा किया तो देखा कि गाय के थनों से दूध अपने आप निकल कर शिवलिंग का अभिषेक कर रहा हैं। यह देखकर राजा सगर अत्यधिक प्रभावित हुए और उस जगह भगवान शिव को समर्पित एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया।
गोपीनाथ मंदिर का निर्माण :- मंदिर के निर्माण का उल्लेख यहाँ स्थापित शिलालेखों की सहायता से मिलता हैं। इसके अनुसार मंदिर का शुरूआती निर्माण 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच यहाँ शासन करने वाले कत्युरी के राजाओं के द्वारा किया गया था। इसके बाद 13वीं शताब्दी में नेपाल के शासक अनेकमल के द्वारा इस मंदिर को और भव्य रूप दिया गया था।
गोपीनाथ मंदिर की सरंचना :- भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण बहुत ही अद्भुत तरीके से किया गया है। यह मंदिर गोपेश्वर के बीचों बीच में स्थित हैं जहाँ से कई धामों व पंच केदारों की यात्रा शुरू होती हैं। मंदिर का निर्माण नागर शैली में किया गया है। जहाँ एक ओर मंदिर का शिखर एक गुंबद की आकृति का है तो वही मंदिर का गर्भगृह 30 वर्गफुट के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित हैं। गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए 24 द्वार बनाए गए हैं जो इसे एक अलग रूप प्रदान करते है। इसके साथ ही मंदिर के अंदर कई देवी-देवताओं की टूटी मूर्तियाँ भी रखी हुई हैं जो इसकी प्राचीनता को दर्शाती हैं। मंदिर के पास में ही माँ दुर्गा, भगवान गणेश व भक्त हनुमान के मंदिर भी बने हुए हैं।
गोपीनाथ मंदिर में विराजते हैं रुद्रनाथ महादेव :- पंच केदार में चतुर्थ केदार रुद्रनाथ मंदिर में स्थापित हैं जो गोपीनाथ मंदिर से 20 किलोमीटर की चढ़ाई पर है। रुद्रनाथ मंदिर की चढ़ाई गोपीनाथ मंदिर के पास सगर गाँव से शुरू होती है। सर्दियों में रुद्रनाथ मंदिर के रास्ते भीषण बर्फबारी के कारण बंद हो जाते हैं तब रुद्रनाथ भगवान के प्रतीकात्मक स्वरुप को वहां से लाकर गोपीनाथ मंदिर में ही स्थापित किया जाता है। यह मुख्यतया दीपावली के बाद किया जाता है। उसके बाद भगवान रुद्रनाथ छह माह तक गोपीनाथ मंदिर में ही निवास करते हैं। इसके बाद मई माह में शुभ मुहूर्त देखकर भगवान रुद्रनाथ को पालकी में बिठाकर डोली यात्रा निकाली जाती है और उन्हें फिर से गोपीनाथ मंदिर से रुद्रनाथ मंदिर में स्थापित कर दिया जाता हैं।
यह मंदिर भक्तों के लिए वर्षभर खुला रहता है। हालाँकि सर्दियों में यहाँ भीषण ठंड पड़ती है लेकिन भक्तगण उस समय भी यहाँ आते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिर भक्तों के लिए सुबह 6 बजे खुल जाता है और शाम में 7 से 8 बजे के बीच बंद हो जाता है।