2011 में एक फ़िल्म आयी थी ‘चलो दिल्ली’ जिसे निर्देशित किया था शशांत शाह ने और जिसमें मुख्य भूमिकाएं विनय पाठक और लारा दत्ता ने निभाई थीं। इस फ़िल्म में अक्षय कुमार ने भी एक छोटा सा किरदार निभाया था। ये फ़िल्म मिहिका बनर्जी (लारा दत्ता) और मनु गुप्ता (विनय पाठक) की जयपुर से दिल्ली तक की यात्रा की कहानी है जिसमें मिहिका को मनु से हर मामले में पूरी तरह से अलग होने और ना चाहने के बावजूद सफर में उनका हमसफर बनना ही पड़ता है। मिहिका जहाँ एक बेहद सफल इन्वेस्टमेंट बैंकर है जो हमेशा धीर-गंभीर रहती है और गुस्सा जिसकी नाक पर रहता है वहीं मनु एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाला एक खुशमिज़ाज़ इंसान है। मिहिका को लगता है कि मनु एक बदतमीज किस्म का और बेहद लापरवाह इंसान है जिसे एक लड़की से बात करने की भी तमीज नहीं है और जो अपनी ज़िंदगी में किसी भी चीज़ को गंभीरता से नहीं लेता। जबकि मनु को लगता है कि मिहिका ज़िंदगी में हर छोटी से छोटी समस्या को भी राई का पहाड़ बना देती है और बेवजह हर छोटी-छोटी बात पर भी चिड़चिड़ाती रहती है। जयपुर से दिल्ली के इस सफर के दौरान हमेशा फ्लाइट में सिर्फ बिज़नेस क्लास में सफर करने वाली मिहिका को कभी पैदल चलना पड़ता है, कभी सड़क किनारे ढाबे पर खाना खाना पड़ता है, कभी किसी ट्रक में लिफ्ट लेनी पड़ती है, कभी ट्रेन के जनरल डिब्बे में सफर करना पड़ता है तो कभी छोटे, गंदे और बदनाम से होटल में भी रुकना पड़ता है। कुल मिला कर उसे वो मध्यम और निम्न मध्यम वर्गों के लोगों की वो दुनिया देखने को मिलती है जिसमें देश के 70-80 प्रतिशत लोग रहते हैं। सफर खत्म होने तक इस सफर और मनु गुप्ता की वजह से मिहिका का ज़िंदगी को देखने और जीने का नज़रिया ही बदल जाता है। ‘चलो दिल्ली’ एक खूबसूरत, पारिवारिक फ़िल्म है जिसे देख कर ना सिर्फ आम लोगों की ज़िंदगी में झाँकने का मौका मिलता है बल्कि ये फ़िल्म एक संदेश भी दे जाती है कि जिंदगी को खुल कर और काफी सारी छोटी-छोटी बातों को भूल कर और उन्हें नज़रअंदाज़ करके जीना भी बहुत ज़रूरी है वरना ज़िंदगी कब हम पर ही बोझ बन जाती है, हमें इसका पता ही नहीं चलता। फ़िल्म का अंत दिल को छू जाता है पर साथ ही एक सुखद सा एहसास भी दे जाता है। विनय पाठक तो उम्दा कलाकार हैं ही पर अपनी परंपरागत ग्लैमर गर्ल से इतर उन्होंने एक संजीदा किरदार काफी सहजता से निभाया है। फ़िल्म के संवाद काफी अच्छे हैं। फ़िल्म में सबसे ज्यादा प्रभावित सिनेमेटोग्राफी करती है क्योंकि फ़िल्म में जयपुर के एक छोटे से गाँव से ले कर भारत के अलग-अलग हिस्सों और आम लोगों के जीवन को काफी अच्छे से दिखाया गया है। फ़िल्म का संगीत औसत है और ज्यादातर गाने स्किप करने लायक हैं पर कमल हीर का गाया एक गाना ‘कौन सी बड़ी बात हो गयी’ काफी अच्छा है। फ़िल्म एक बार देखे जाने लायक तो ज़रूर है।