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आपने अक्सर मां लक्ष्मी के मंदिर में भक्तों को घर में धन-धान्य एवं समृद्धि की कामना को लेकर माता से प्रार्थना करते हुए सुना होगा और देखा होगा, लेकिन हम आपको बांसवाड़ा के एक ऐसे मंदिर में लिए चलते हैं जहां भक्त मां लक्ष्मी से धन धान्य नहीं वरन अपनी मन्नत पूरी करने के लिए लिखित रूप में अर्जी रखकर जाते हैं।
आइए इस धनतेरस पर आपको लिए चलते हैं बांसवाड़ा के इस अनूठे मां महालक्ष्मी के मंदिर में
यह मंदिर शहर के महालक्ष्मी चौक पर स्थित है जो 480 साल पुराने मां महालक्ष्मी मंदिर। यहां भक्त अपनी मन्नत काे पूरी कराने के लिए चिट्ठियां चढ़ा जाते हैं। यहां तक कि दानपात्र में भी चिट्ठियां डालते हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि मां उनकी मन्नतें पढ़ और जानकर उसे पूरा भी करती हैं। श्राद्ध पक्ष की अष्टमी पर मां का जन्मदिवस मनाया जाता है। इसी दिन या बसंत पंचमी पर चिट्ठी खाेलते हैं। यह चिट्ठियां केवल दाे से तीन साल ही एकत्रित रखते हैं।
यह मंदिर शहर के महालक्ष्मी चौक पर स्थित है जो 480 साल पुराने मां महालक्ष्मी मंदिर। यहां भक्त अपनी मन्नत काे पूरी कराने के लिए चिट्ठियां चढ़ा जाते हैं। यहां तक कि दानपात्र में भी चिट्ठियां डालते हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि मां उनकी मन्नतें पढ़ और जानकर उसे पूरा भी करती हैं। श्राद्ध पक्ष की अष्टमी पर मां का जन्मदिवस मनाया जाता है। इसी दिन या बसंत पंचमी पर चिट्ठी खाेलते हैं। यह चिट्ठियां केवल दाे से तीन साल ही एकत्रित रखते हैं।
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इसके बाद इसे विसर्जित कर देते हैं। खास बात यह है कि देश में सभी जगह माताजी की प्रतिमा श्रीयंत्र पर विसर्जित है, जबकि यहां पर मां के गुंबद में श्रीयंत्र बना है। समाज अध्यक्ष नरेश श्रीमाल ने बताया कि मां महालक्ष्मी श्रीमाली समाज की कुलदेवी हैं। इसी वजआए, बल्कि हर घर से श्रद्धानुसार रुपए एकत्र किए। उस समय करीब 5 लाख रुपए से मां का शृंगार किया हुआ था। इसके बाद से ही मां के नाम चिट्ठी का सिलसिला शुरू हुआ।
सफेद मार्बल से बनी साढ़े तीन फीट की यह प्रतिमा कमल के आसन पर बैठे हुए रूप में है। यहां 16 दल के कमल पर मां महालक्ष्मी विराजित है। ऋग्वेद में उल्लेख किया है कि बैठी हुई लक्ष्मीजी की पूजा करने से माता सदैव आपके घर में विराजित रहती हैं। माता के नाम पर ही चौक का नाम महालक्ष्मी चौक रखा है। उन्होंने बताया कि डूंगरपुर में फौज का बड़ला में स्थित महालक्ष्मी के मंदिर का निर्माण 750 साल पहले कराया गया था। इसके बाद पूर्व राजपरिवार की ओर से बांसवाड़ा में प्रतिमा स्थापित की गई।
महालक्ष्मी जी की प्रतिमा का पहले साढ़े पांच किलाे चांदी के वस्त्रों से शृंगार करते हैं। इसके अलावा साेने का हार, अंगुठी, नथ भी पहनाई जाती है। मंदिर में इस चढ़ावे और शृंगार की सुरक्षा के लिए कोई अलग से सुरक्षा गार्ड नहीं रखा है।
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